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गाथा ७८-७९ ] क्षपणासार
[७३ संज्वल नक्रोघके स्पर्धकों को तत्प्रायोग्य अनन्तसे भागदेकर एकभागप्रमाणसे विशेष अधिक मानकषायके अपूर्वस्पर्धक हैं । इसी प्रकार मान और मायाकषायके अपूर्वस्पर्धकोंको यथाक्रम तत्प्रायोग्य अनन्तका भाग देकर माया और लोभकषायके विशेषअधिक अपूर्वस्पर्धकोंका प्रमाण प्राप्त होता है । संज्वलनक्रोध-मान-माया व लोभकषायके अपूर्वस्पर्धको की अङ्कसन्दृष्टि [१६।२०।२४.२८] इसप्रकार है'।
समखंडं सविसेसं णिक्विवियोंकट्टिदादु सेसधणं । पक्खेवकरण इजि.गोउंदण उसवय ८॥४६६॥ मोक्कट्टिदं तु होदि अपुचदिवग्गणार होणकमं । पुवादिवग्गणाए असंखगुणहीणयं तु हीणकमा ॥७६ ॥४७० ___अर्थ-अपकषित द्रव्य में से अपूर्वस्पर्धकको प्रादिवर्गणासे लेकर विशेषहीनक्रमसे द्रव्य दिया जाता है, किन्तु पूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणा में संख्यातगुणाहोच द्रव्य दिया जाता है उसके पश्चात् विशेषहीनक्रमसे द्रव्य दिया जाता है। अपूर्वस्पर्धकको वर्गणाओंमें विशेषसहित समखण्डद्रव्य देकर शेषद्रव्यको इसप्रकार दिया जाता है जिससे पूर्व और अपूर्व दोनों स्पर्धकोंका एक गोपुच्छाकार सिद्ध हो जावे ।
विशेषार्थः- अपूर्वस्पर्धकोंको अन्तिम वर्गणा में दिये गये द्रव्यसे असंख्यातगुणाहीन द्रव्य पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गगामें क्यों दिया जाता है उसे बतलाते हैं-अपूर्वस्पर्धक को अन्तिमवर्गणामें जो द्रव्य निक्षिप्त किया गया है वह पूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणासे एकवर्गणा चय (विशेष) अधिक है। पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणामें पूर्व अवस्थितद्रव्यका असंख्यातांभाग द्रव्य निक्षिप्त किया जाता है, क्योंकि सम्पूर्ण द्रव्यके असंख्यातवेंभागमात्र अर्थात् सम्पूर्ण द्रव्यको कुछ अधिक डेढ़गुणहानिसे भागदेने पर पूर्वस्पर्धकको आदिवगंणाका द्रव्य आता है और उस आदिवर्गणाको उत्कर्ष-अपकर्षभागहारसे खण्डित करने पर अपकर्षित द्रव्य प्राप्त होता है। अङ्कसन्दृष्टि में सम्पूर्णद्रव्य ६३०० है । एक गुणहानि ८ है, डेढगुणहानि (x) १२ है । सम्पूर्णद्रव्य ६३०० को कुछ अधिक डेढ़गुणहानि १२ से भाजित करने पर ५१२ आदिवर्गणाका द्रव्य प्राप्त होता है । इस आदिवर्गणा (५१२) को उत्कर्षण-अपकर्षण भागाहारसे खण्डित करनेपर अपकषितद्रव्यका
१. जयधवल मूल पृष्ठ २०३० । क० पा० सुत्त पृष्ठ ७६१ सूत्र ५०५ से ५०६ ।