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गाथा ५. ] क्षपणासार
[ ४६ काण्डकको अन्तिम फालि है उसको सर्वसंक्रमणके द्वारा संक्रमाता है । इस प्रकार नपुंसकवेदको पुरुषवेदरूप परिणमाकर नाशको प्राप्त कराता है। ऐसा अर्थ खोवेदको क्षपणा आदिमें भी लगाना चाहिए।
'बंधेण होदि उदओ अहिलो उदएण संकमो अहिो । गुणसे डि असंखेजापदे सग्गेण बोधवा . ॥५०॥४४१॥
अर्थः-बंधसे उदय अधिक होता है और उदयसे संक्रम अधिक होता है । इसप्रकार प्रदेशाग्रको अपेक्षा गुणश्रेणि असंख्यातगुणी जानना चाहिए । (गुणकाररूपसे पंक्तिकी अपेक्षा गुणश्रेणिका प्रयोग हुआ है।)
विशेषार्थ:--'प्रदेश' शब्दसे परमाणुरूप द्रव्य जानना । यहाँ समयप्रबद्ध बंधता है उसमें ७का भाग देनेपर मोहनीय कर्मको जो द्रव्य प्राप्त होता है उसमें कषाय व नोकषायरूप द्रव्यप्राप्तिके लिए पुनः दोका भाग देनेसे नोकषायरूप पुरुषवेदका जितना द्रव्य प्राप्त होता है उतने प्रमाण तो प्रदेशोंका बन्ध होता है तथा सर्वसत्तारूप पुरुषवेदसंबंधी द्रव्यमें गुणश्रेणी आदिके द्वारा दिये गये द्रव्यसहित इससमय उदय पाने योग्य विषेकका द्रव्य असंख्यातसमय प्रबद्धप्रमाण है सो उतने प्रदेशोंका उदय होता है। ये प्रदेश बंधप्रदेशोंको अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। सर्वद्रव्यको गुणसंक्रमणका भाग देनेसे जो प्रमाण आता है, उतने प्रदेशोंका संक्रमण होता है सो ये प्रदेश भी उदयप्रदेशोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं । इसप्रकार एक ही काल में होनेवाले बन्ध, उदय व संक्रमणकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहने से गुप, संक्रमणरूप द्रव्यका प्रमाण जाना जाता है।
जिन प्रकृतियोंका अधःप्रवृत्तसंक्रमण होता है उनका भी संक्रमण द्रव्य असंख्यातसमयप्रबद्धप्रमाण होनेसे उदयद्रव्यकी अपेक्षा असंख्यात गुणा है ।
शङ्काः-उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारसे अधःप्रवृत्तसंक्रमणभागहार असंख्यातप्रणा है अतः अधःप्रवृत्तसंक्रमण द्रव्य उदयद्रव्य से असंख्यातगुणा नहीं हो सकता ।
___समाधान:-अपकर्षित किया हुआ सभी द्रव्य गुणश्रेणि में नहीं दिया जाता उसका असंख्यातवांभागप्रमाण द्रव्य दिया जाता है अतः उदयद्रव्यसे संक्रमणद्रव्य असंख्यातगुणा है।
१. क. पा. सुत्त पृष्ठ ७६६ गा. १४४ के समान । प० पु०६ १०३५६ 1 ज०५० मूल पृ० १९६४। २. जयधवल मूल पृष्ठ १६६५ !