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क्षपणासार
गाथा ७२ ] तक बुद्धिरूप अर्थात् हानि वृद्धिरूप दिखाई देनेके कारण इसे अपवर्तनोद्वर्तनकरण भी
छह नोकषायका द्रव्य और पुरुषवेदका प्राचीनसत्कर्म सर्वसंक्रमणद्वारा क्रोध संक्रांत हो जाने के अनन्तरसमयमें प्रथमसमयवर्ती अवेदी होता है उसी समय में प्रथमसमयवर्ती अश्वकर्णकरणकारक होता है अर्थात् क्रोधसे लोभतक चारों संज्वलनकषायोंका अनुभागक्रमसे हीयमान हो जाता है। क्रोधके अनुभामसे मानका अनुभाग हीयमान, मानसे मायाका अनुभाग होयमान और मायासे लोभका अनुभाग हीयमान हो जाता है ।
'ताहे संजलणाणं ठिदिसंतं संखवस्सयसहस्सं ।
अंतोमुहुत्तहीणो सोलसवस्साणि ठिदिबंधो ॥७२॥४६३॥
अर्थः-'ताहे' वहां अश्वकर्णकरणके प्रथमसमय में संज्वलनकषायोंका स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्ष है और स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम सोलबर्ष है।
विशेषार्थः-यद्यपि सात नोकषायोंके क्षपणकाल में सर्वत्र संज्वलनकषायोंका स्थितिसत्त्व संख्यातहजारवर्ष ही था, किन्तु अश्वकर्णकरण करने के प्रथमसमयमें वह संख्यातसहस्र स्थितिकांडकोंसे संख्यातगुणितहानिके द्वारा पर्याप्तरूपसे घटकर उससे संख्यातगुणितहीन हो जाता है । सवेदके अंतिमसमयमें चारों संज्वलनकषायोंका स्थितिबंध पूर्ण १६वर्षप्रमाण था वह स्थितिबंध वहींपर समाप्त हो जाता है । अश्वकर्णकरणके अर्थात् अवेदके प्रथमसमय में
१, अश्वस्य कर्णः अश्वकर्णः, अश्वकर्णवत्करणमश्वकर्णकरणम् | यथावकर्णः अग्रात्प्रभृत्यामलाद
क्रमेण हीयमामस्वरूपो दृश्यते, तथेदमपि करणं क्रोधसंज्वलनात्प्रभत्यालोभसंज्वलनाद्यथाक्रममनन्तगुणहीनानुभागस्पर्धकसंस्थानव्यवस्था करणमश्वकर्णकरणमिति लक्ष्यते । संपहि आदोलनकरणसण्णाए अस्थो वृच्चदे-आदोलं णाम हिंदोलमादोलमिधकरणमादोलकरणं। यथा हिदोलत्यंभस्स बरत्ताए च अंतराले तिकोणं होगुण कण्णायारेण दोसइ, एवमेत्य वि कोहादिसंजला णाणमणुभागसंरिगवेसो कमेण हीयमाणो दोसइ ति एदेण कारणेण अस्सकण्णकरणस्स आदोलकरणसण्णा जादा। एवमोवट्टण-उठवट्टणकरणेत्ति एसो वि पज्जायसद्दो अणुगयट्ठो दुवो, कोहादिसंजलणाणमणुभागविण्णासस्स हावि विसरूवेणायट्ठाणं पेखियूण तत्थ ओवट्टणध्वट्टण. सण्णाए पुख्वाइरिएहिं पट्टिवेदत्तादो। क. पा. सुत्त पृ. ७५५-५६ । घबल पु० ६ पृष्ठ ३६४
टिप्पण नं० ५। २. क. पा. सुत्त पृष्ठ ७८८ सूत्र ४७४-७५ । घ. पु. ६ पृष्ठ ३६५ । ज. प. मूल पृष्ठ २०२२-२३ ।