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क्षपणासार
[ गाथा ३६
वृत्त यह संज्ञा प्राप्त नहीं हो सकती है उसीप्रकार इन परिणामोंको भी अनिवृत्तिकरण यह संज्ञा प्राप्त नहीं हो सकेगी और असंख्यातगुणश्रेणीके द्वारा कर्मस्कन्धों के क्षपणके कारणभूत परिणामोंको छोड़कर अन्य कोई भी परिणाम स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात के कारणभूत नहीं हैं, क्योंकि, उन परिणामोंका निरूपण करनेवाला सूत्र ( आगम ) नहीं पाया जाता है।
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शंकाः - अनेक प्रकार के कार्य होनेसे उनके सावनभूत अनेक प्रकारके कारणों का अनुमान किया जाता है ? अर्थात् हवं गुणस्थान में प्रतिसमय असंख्यातगुणी कर्मनिर्जरा, स्थितिघात्यादि अनेक कार्य देखे जाते हैं इसलिए उनके साधनभूत परिणाम भी अनेक प्रकारके होने चाहिए ।
समाधान:- यह कहना भी नहीं बनता, क्योंकि एक मुद्गरसे अनेक प्रकार के कपालरूप कार्यकी उपलब्धि होती है ।
शंका:- वहां भी मुदुगर एक भले ही रहा आवे, परन्तु उसकी शक्तियों में एकपता नहीं बन सकता । यदि मुदुगरकी शक्तियों में भी एकपना मान लिया जावे तो उससे एक कपालरूप कार्यकी उत्पत्ति होगी ।
समाधान:- यदि ऐसा है तो यहां भी स्थितिकाण्डकघात, अनुभाग काण्डकघात, स्थितिबन्धा पसरण, गुणसंक्रमण गुणश्रेणी शुभप्रकृतियोंके स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध के कारणभूत परिणामों में नानापना रहा आवे तो भी एकसमय में स्थित नानाजीवों के परिणाम सदृश ही होते हैं अन्यथा उन परिणामोंके 'अनिवृत्ति' यह विशेषण नहीं बन सकता है ।
शंका:- यदि ऐसा है तो एक समय में स्थित सम्पूर्ण अनिवृत्तिकरणगुणस्थान वालोंके स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघातकी समानता प्राप्त हो जावेगी । समाधान: --- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि यह बात तो हमें इष्ट ही है । शंका: -- प्रथम स्थितिकाण्डक और प्रथम अनुभागकाण्डकों की समानताका नियम तो नहीं पाया जाता है इसलिए उक्त कथन घटित नहीं होता है ।
समाधान:- यह दोष कोई दोष नहीं है; क्योंकि, प्रथमसमय में धातकर के शेष बचे हुए स्थितिकाण्डकोंका और अनुभाग काण्डकोंका एकप्रमाण नियम देखा जाता है । दूसरी बात यह है कि अल्पस्थिति और अल्प- अनुभागका विरोधी परिणाम उससे