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गाथा ११ ]
क्षपणासार
आगे अतिस्थापनाका प्रमाण तो अवस्थित उपरितनएकावलिप्रमाण है और निक्षेप एकएकसमय बढ़ता जाता है।
उत्कृष्ट निक्षेप-उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का प्रमाण १००० समय है। १६ समय बन्धावलि के व्यतीत होनेपर स्थिति १०००-१६ =९८४ समयप्रमाण शेष रह जाती है । ९८४वें समयवाले निषेकके द्रव्यका अपकर्णण होनेपर ६७८ से १८३ तक १६ निषेक तो अतिस्थापनारूप हैं और प्रथमनिषेकसे ६७७ निषेकतक निक्षेप है । यह उत्कृष्ट निक्षेपकी अङ्कसन्दृष्टि है ।
शंका:-क्षपश्रेणिके कथन में सांसारिक अवस्थाके उत्कृष्टनिक्षेपका प्रमाण बतलाना असम्बद्ध है । फिर क्यों यह कथन किया गया ?
समाधान:-प्रसङ्गवश अपकर्षणसम्बन्धी यह कथन किया गया। इस प्ररूपणामें कोई दोष नहीं है। यहां अल्पबहत्व इसप्रकार है- 'एकसमयकम आवलिके तृतीयभागसे एक समयाधिक (६) जघन्यनिक्षेपका प्रमाण है जो सबसे स्तोक है, इससे अधिक जघन्यअतिस्थापना है जिसका प्रमाण एकसमयकमावलिके दो विभाग (१०) है । इससे विशेष अधिक उत्कृष्ट अतिस्थापनावलि (१६ ) प्रमाण है। उत्कृष्ट निक्षेप इससे असंख्यातगुणा है, क्योंकि वह समयाधिक दोश्रावलिकम उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है।
____ अनुभागविषयक अपकर्षणसम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट निक्षेप व अतिस्थापनाका प्रमाण जानना चाहिए । स्थिति-अनुभागविषयक उत्कर्षणसम्बन्धी जघन्य व उत्कृष्ट अतिस्थापना व निक्षेपका कथन आगे किया जावेगा अतः यहां नहीं किया है।
संकामेदुक्कड्डदि जे अंसे ते अवठ्ठिदा होति । श्रावलियं से काले तेण परं होंति भजिदव्वा ।।११।।४०२॥
१. जयधवल मूल पृष्ठ २००४ । २. यह गाथा क० पा की १५३ वीं माथा समान है, किन्तु 'दुक्कट्टदि' और 'भजियव्व' के स्थान
पर क्रमशः दुवकडुदि' और 'भजिदव्बा' पाठ हैं जो शुद्धप्रतीत होते हैं अत: यहां शुद्धपाठ क० पा० के अनुसार ही प्रयुक्त किये हैं । यह गाथा धवल पु० पृष्ठ ३४६ पर भी पाई जाती है । तथा जयधवल मूल पृष्ठ २००५, क. पा० सुत्त पृष्ठ ७७७ पर भी है ।