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शव
पृष्ठ मानुपूर्वी संक्रम २७२, १६७
पायुक्तकरण
१९६ क्षप०४७'
परिभाषा मन्सरकरण [नवम गुणस्थान में ] कर चुकने के प्रथम समय में मोहनीय कर्म सम्बन्धी सात फरण प्रारम्भ होते हैं। उसमें से यह प्रथम करण है। मथा-स्त्रीवेदनपुसमवेद के प्रदेश पुंज पुरुषवेद में संक्रान्त होते हैं । पुरुषवेद छ: नोकषाय तथा प्रत्याख्यान, पप्रत्यास्यान कषाय सं० शोध में ही संक्रान्त होते हैं। इसी तरह संज्यलन कोष तथा दोनों प्रकार के मान मान संचालन में ही; मान संज्वलन तथा दोनों प्रकार की मामा संज्वलन मामा में ही तथा माया संज्वलन और दोनों लोभ लोम संज्वलन में ही संक्रान्त होते हैं। यह प्रानुपूर्वी संक्रम है। [मानुपूर्वो सकम मानी एक नियत क्रम में संकम] भायुक्त करण, उद्यत करण और प्रारम्भ करण ये तीनों एकार्यक है । तात्पर्यरूप से यहां से लेकर नपुसकर्वेद को उपशमाता है, यह इसका अर्थ है । ज.ध. १३/ २७२ कहा भी है-मसक वेद का "पायुक्तकरण संक्रामक" ऐसा कहने पर नपुसक वेद की क्षपणा [या उपशामना] के लिये उद्यत होकर प्रवृत्त होता है यह कहा गया है १ । नयधवला मूल पृ............ "ताधे चेव एसयवेदस्स आजुसकरणसंक्रामगो" की जयघवला। उपशम श्रेणी चढ़ने वाले को मारोहक तथा उतरने वाले को अवरोहक कहते हैं ! धवल ६/३१८-१६ विवक्षित प्राक्तन सत्कर्म से उसी कर्म का नवीन स्थितिबन्ध अधिक होने पर बन्ध के समय उसके निमित्त से सत्कर्म की स्थिति को बढ़ाना उत्कर्षण कहलाता है । कहा भी है-'वाम्मपदेसििदवछावणमुक्कड्डणा' अर्थात् कर्म प्रदेशों की स्थिति को बढ़ाना उत्कर्षरण है। [धवल १०/१२] अमत्र भी कहा है स्थित्यनुभागयोवृद्धिः उत्कर्षणम्" अर्थात् स्थिति व अनुभाग में वृद्धि का होना उत्कर्षण कहलाता है। [गो० ० गा० ४३८ की टीका] उत्पादानुच्छेद द्रव्याथिकानव को कहते हैं। यह सत्त्वावस्था में ही विनाश को स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ-सूक्ष्मसाम्पराय नामक दसवें गुणस्थान में अन्तिम समय तक सूक्ष्म लोभ का उदय है । वहां पर उसकी उदयव्युच्छित्ति बतलाई जाती है। सो यह कथन उत्पादानुच्छेद की अपेक्षा से जानना चाहिये। जय घरल' ७/ ३०१-३०२; गो. क. गा०६४ की बड़ी टीका (तन उत्पादानुच्छेदो नाम द्रव्या१. यानी क्षपणा च उपशामना; दोनों के ही नन्दर प्रायुक्तकरण शब्द प्रारम्भ
करण अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
मारोहकावरोहक २५७
उत्कर्षण
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उत्पादानुच्छेद तथा म.सा.
२०८। २३, ६१