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शब्द
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अनुदी
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भनुदीर्णोपशामना २४९
अनुभाग काण्डक- ४४; क्ष. सा.
ात
४, १०
( ७ )
परिभाषा
"अनुकर्षणमनुकृष्टिः" अर्थात् उन परिणामों की परस्पर समानता का विचार करना, यह अनुष्टि का मर्थ है।
देखा करणशानना की परिभाषा में
अकरगोपशामना का दूसरा नाम ही अनुदीपशामना है ।
पारद्धपढमसमयादो अंतोमुहुत्तरा काले जो घादी शिष्पज्जदि सो अणुभागखंडय घावोणाम |
बवल १२/३२
द्वारा जो घात
अर्थ -- प्रारम्भ किये गये प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल के निष्पत होता है वह अनुभाग काण्डकवात है । काण्डक पोर को कहते हैं। कुल अनुभाग के हिस्से करके एक-एक हिस्से का फालि क्रम से अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा प्रभाव करना अनुभाग काण्डकयात कहलाता हूँ ।
[ष० १२ / ३२ विशे० ] विशुद्धि में अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभाग का मनन्त बहुभाग अनुभागकाण्डक घात द्वारा घात को प्राप्त होता है। करण परिणामों के द्वारा श्रनन्व बहुभाग अनुभाग घाते जाने वाले भाग काण्ड के शेष विकल्पों का होना असम्भव है। एक एक अन्तर्मुहूतं में एक एक अनुभाग काण्डक होता है । एक एक अनुभाग का पडकोत्कीरण काल के प्रत्येक समय में एक-एक फालि का पतन होता है ।
कर्म के अनुभाग में स्पर्धक रचना होती है । प्रथमादि स्पर्धक में रूप अनुभाग होता है तथा धागे-आगे अधिक । वहां समस्त स्पर्धकों को श्रनन्त का भाग देने पर बहुभाग मात्र ऊपर के स्पर्धकों के परमाणुओं को एक भाग मात्र नीचे के स्पर्धेकों में परिणामाते हैं । वहां कुछ परमाणु पहले समय में परिस्कृत कराये जाते हैं, कुछ दूसरे समय में, कुछ तीसरे में ऐसे अन्तर्मुहुर्त काल में समस्त परमाणुओंों को परिणत करके ऊपर के स्पर्धकों का प्रभाव किया जाता है। यहां प्रत्येक समय में जो जो परमाणु नीचे के स्पर्धकरूप परिमाये उनका नाम फालि है। इसप्रकार अन्तर्मुहुर्त में जो कार्य किया, उसका नाम काण्डक है। इस अनुभागकाण्डक द्वारा जिन स्पर्धकों का अभाव किया वह अनुभाग काण्डकायाम है। एक एक स्थितिकाण्डकात के अन्तर्मुहूर्त काल के संख्यातहजारवें भाग प्रमाण प्रस्तर्मुहूर्त काल मैं ही एक अनुभाग काण्डकघात हो जाता है । ल० सा० ७६, ८०, ८१