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शम्ब
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परिभाषा वस्तु अनन्तता के कारण यदि अनवस्था है तो उसका वारण नहीं किया जा सकता, वह तो भूषण है । षड्दर्शनसमुच्चय का० ५७ प्रकरण ३७१ पृष्ठ ३६२ [सं० डॉ० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य] कहा भी है—मप्रमाणिकानन्तपदार्थपरिकल्पनया विधान्त्यभावोऽनवस्था। यानी अप्रामाणिक अनन्त पदार्थों की कल्पना करते हुए जो विश्रान्ति का प्रभाव होता है, इसका नाम अनवस्थादोष है। प्र. २० माला पृ. २७७ टि० १० । अभिधान रा. कोश. १/३०२ जैसे-पुत्र पिता के प्राधीन है, पिता अपने पिता के अधीन है, वह अपने पिता के प्राधीन है। इसीत्रकार सत् और परिणाम को पराधीन मानने पर मनवस्था दोष आता है क्योंकि पराधीनता रूपी भुसला का कभी अन्त नहीं मावेगा।
पं०५० पू० ३८१-८२ यानी दो में से कोई एक वर्म, पर के पाषय है, तो जिस पर के प्राश्रय है वह भी सब तरह से अपने से पर के प्राश्रय होने से, अन्य पर के आश्रय की अपेक्षा करेगा और वह भी पर अन्य के प्राश्रय की अपेक्षा रखता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर अन्य-अन्य प्राश्रयों की कल्पना की सम्भावना से अनवस्या प्रसंग रूप दोष प्राता है । जिम करण में विद्यमान जीवों के एक समय में परिणाम भेद नहीं है वह अनिवृत्तिकरण है। ज० प० १२/२३४ प्रनिवृत्तिकरण में एक-एक समय में एक-एक करण है। ज.ध. १२/२ ही परिणाम होता है, क्योंकि यहां एक समय में जघन्य व उत्कृष्ट भेद का प्रभाव है । एक समय में वर्तमान जीवों के परिणामों की अपेक्षा निवृत्ति या विभिन्नता जहां नहीं होती के परिणाम पनिवृत्तिकरण कहलाते हैं। घ०० ६ पृ० २२१-२२२ सारतः अनिवृत्तिकरण में प्रस्पेक समय में नाना जीयों के एक सा ही परिणाम होता है । नाना जीवों के परिणामों में निवृत्ति [अर्थात् परस्पर भेद] जिसमें नहीं है वह अनिवत्तिकरण है। घवल १/१८३, क.पा. सू०पू० ६२४, ज. ध० १२/२५६ अध: प्रवृत्ताकरण के प्रथमसमय से लेकर चरम समयपर्वन्त पृथक-पृथक एक एक समय में छह दृद्धियों के कम से अवस्थित और स्थितिबन्धापसरणादि के कारणभूत असंख्यातलोक प्रमाण परिणामस्थान होते हैं। परिपाटी क्रम से विरचित इन परिणामों के पुनरुक्त और अपुनरुक्त भाव का अनुसन्धान करना अनुष्टि है ।
अनिवृत्तिकरण ३१, ६८१,
४३, ६६क्षप. २४
अनुकृष्टि