________________
१२० ]
अब्धिसार
[ गाथा १३१ ऊपर इस समय दिया जानेवाला द्रव्य प्रत्येक स्थिति के प्रति पूर्वके अवस्थितद्रव्यसे असंख्यातगुणा होता है, क्योंकि अन्तिमफालि का द्रव्य कुछ कम डेढ़गुणहानिगुरिणत समयप्रबद्ध प्रमाण है' ।
सम्यक्त्व की आठवर्ष स्थितिसत्कर्म से पूर्व उदयावलिसे बाह्य गुणश्रेरिण पायाम था, किन्तु अब यहां से उदयरूप वर्तमान समयसे ही गुणश्रेणि आयाम प्रारम्भ हो जाता है इसलिये यह गुणश्रेणी पायाम 'उदयादि' कहा जाता है । पूर्व में प्रतिसमय गुणश्रेरिग आयाम घटता जाता था इसलिये वह गलितावशेष गुणनोणि थी, किन्तु अब नीचे का एकसमय व्यतीत होनेपर उपरिम स्थितिका एकसमय गुरगश्रेरिणमें मिल जानेसे गुणोंरिग पायाम जितना था उतना ही रहता है, घटता नहीं है। अतः यह गुणश्रेणि पायाम अवस्थित स्वरूप है। इसलिये यह उदयादिअवस्थित गुणश्रेरिणआयाम है । पूर्वमें एकस्थिति काण्डक द्वारा पल्यका असंख्यातवांभाग स्थितिका घात होता था, किन्तु अब एक स्थितिकांडक द्वारा अन्तर्मुहर्तमान स्थितिका घात होता है, क्योंकि इस स्थलपर पल्योपमके असंख्यातभाग आदि विकल्प संभव नहीं हैं।
अनुभाग. अपवर्तन का निर्देश करते हैं--- 'विदियावलिस्स पढमे पढमस्संते य आदिमणिसेये । तिट्ठाणेणंतगुणेणणकमोबट्टणं चरमे ॥१३१॥
अर्थ-द्वितीयावलिके प्रथम निषेक, प्रथमावलि (उदयावलि) के अन्तिम निषेक और उदयरूप प्रथम निषेक, इन तीनस्थानों में सम्यक्त्वकी आठवर्षकी स्थितिसे उच्छिष्टावलि पर्यन्त सम्यक्त्वप्रकृतिके अनुभागका प्रतिसमय अनन्तगुरणे घटते क्रमसे अपवर्तनघात होता है।
विशेषार्थ- सम्यक्त्वप्रकृतिके अन्तिमकाण्डककी (मिश्र व सम्यक्त्वप्रकृतिकी) द्विचरम दो फालिके पतन समयमें-आठवर्ष स्थिति करनेके समयसे पूर्वसमय तक तो लता-दारुरूप द्विस्थानगत अनुभाग है सो अनुभागकांडकघातसे अनन्तागुणा हीन हुआ ।
१. ज. प. पु १३ पृ. ६४-६६ । ध पु. ६ पृ. २५६-६० । २. ' ज.ध. पु. १३ पृ. ५६-६० । ३. ज. प. पु. १३ पृ. ६३ । ध, पु. ६ पृ. २५६ ।