________________
१२२ }
लब्धिसार
[ गाथा १३२-१३३ 'आठवर्ष की स्थिति के पश्चात् कहांतक और किस विधिसे द्रव्यनिक्षेप होता है इसका कथन करते हैं
अडवस्से उवरिस्मि वि दुचरिमखंडस्स चरिमफालित्ति। संखातीदगुणक्कम विशेषहीणक्कम देदि ॥१३२।।
अर्थ-पाठवर्ष की स्थिति करनेके अनन्तर समयसे लेकर द्विचरमकाण्डककी अन्तिमफालिके पतन समयतक उदयादि अवस्थित गुरणश्रेरिणायाममें असंख्यातगुणा क्रम लिये हुए तथा ऊपर अन्तर्मुहूर्तकम आठवर्षप्रमाण स्थितियोंमें विशेषहीन अर्थात् चय घटता क्रम लिये निक्षेपण होता है अर्थात् दिया जाता है।
विवार्म..... मालवर्षकी कितिसत्कर्मके अनन्तरसे लेकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितिकाण्डकघात के द्वारा अपवर्तित होनेवाली सम्यक्त्वकी स्थितियों में जो प्रदेश पूज होता है, अपकर्षण भागहारके प्रतिभागद्वारा उसे ग्रहणकर उदयादि अवस्थित-गुणश्रेरिणमें निक्षिप्त करता हुआ उदयमें स्तोक प्रदेशपुजको देता है। उससे अनन्तरसमय में असंख्यातगुणा देता है । इसप्रकार क्रमसे गुणश्रेणिशीर्षके अधस्तनसमयके प्राप्त होने तक असंख्यातगुणित क्रमसे सिंचन करता है । पुनः इससे उपरिम अनन्तर एक स्थितिमें भी असंख्यातगुरणे प्रदेशपुज का. सिंचन करता है, क्योंकि यहां अवस्थित गुणश्रेरिण निक्षेपकी प्रतिज्ञा की गई है । इससमय अपकषित हुए द्रव्य के बहुभागको अन्तमुहर्तकम आठवर्षों के द्वारा भाजितकर वहां जो एकभाग प्रमाण द्रव्य प्राप्त हो, विशेष अधिक करके उसे इस समयके गुणश्रेरिणशीर्ष में निक्षिप्त करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इससे ऊपर सर्वत्र प्रतिस्थापनावलिमात्रसे अन्तिमस्थितिको नहीं प्राप्त होने तक विशेषहीन-विशेषहीन द्रव्यका सिंचन करता है । इसप्रकार यह क्रम द्विचरम स्थितिकाण्डकतक होता है ।
पाठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्त्व प्रवशिष्ट करनेके प्रथम (पूर्व) समयमें, आठवर्षप्रमाण स्थितिसस्व करने के समय में, आगामो समयमें पाये जानेवाले विधान आरिका कथन
भडवस्से संपाहियं पुठिवल्लादो असंखसंगुणियं ।
उवरिं पुण संपाहियं असंखसंख च भागं तु ॥१३३॥ १. ज. ध. पु. १३ पृ. ६४-७० । क. पा. सुत्त. पृ. ६५२ ।