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लब्धिसार
[ गाथा २०४ एवं उत्कृष्टस्थान यथायोग्य मन्दकषायबालेके होता है ।।२००।।
प्रतिपद्यमानस्थान आर्य व म्लेच्छकी अपेक्षा दो प्रकारका है सो उनका जघन्य स्थान तो मिथ्यादृष्टिसे संयमी होनेवाले जोबके और उत्कृष्टस्थानयुगल देशसंयतसे संयमी हुए जीवके होता है। प्रतिपद्यमानस्थानोंके ऊपर जो अनुभयस्थान हैं वे सामायिकछेदोपस्थापना-संयम सम्बन्धी होते हैं। उन दोनों संयमोंके जघन्य व उत्कृष्टस्थानों के मध्य परिहारविशुद्धिसंयमके स्थान हैं ।।२०१॥
परिहार विशृद्धिसंयमका जघन्यस्थान संक्लेशवश सामायिक-छेदोपस्थापना संयममें गिरते हुए जीवके चरम समय में और परिहारविशुद्धिसंयमका उत्कृष्टस्थान उसमें ही सर्वविशुद्ध अप्रमत्तजीवके एकान्तवृद्धिके चरमसमयमें होता है ॥२०२॥
सामायिक-छेदोपस्थापनासंयमका जघन्यस्थान मिथ्यात्वके सम्मुख हुए जीवके संयमसम्बन्धी चरमसमय में होता है जो जघन्य संयमका स्थान ही है। सामायिकछेदोपस्थापनासंयपका उत्कृष्टस्थान क्षपकअनिवृत्ति करगाके चरमसमय में होता है । सूक्ष्मसाम्परायसंयमका जघन्यस्थान सूक्ष्मसाम्परायोपशमकजीव जो उपशमश्रेणिसे गिरते हुए मूक्ष्मसाम्परायके चरम समयमें अनिवृत्तिकरण के सम्मुख है, उसके होता है ।।२०३।।
क्षीणकषायके सम्मुख हुए सूक्ष्मसाम्परायक्षपकके अन्तिम समय में सूक्ष्मसाम्परायसंयमका उत्कृष्टस्थान होता है | यथाख्यातचारित्र सर्व संयमसामान्य में उत्कृष्टस्थान है, क्योंकि उसके जघन्य आदि विकल्पों का अभाव है। प्रतिपात और प्रतिपद्यमान सम्बन्धी जितने भी स्थान कहे हैं वे सभी सामायिक-छेदोपस्थापनासंयम सम्बन्धी ही कहे गये हैं, क्योंकि सकलसंयमसे भ्रष्ट होते हुए चरम समय में और सकलसंयमको ग्रहण करनेके प्रथमसमयमें सामायिक-छेदोपस्थापना संयम ही होता है, अन्य परिहारविशद्धि प्रादि संयम नहीं होते हैं ।
विशेषार्थ-००००००००००००००००००००० अन्तर । ये असंख्यातलोकप्रमाण संयमके प्रतिपातस्थान मिथ्यात्वको जानेवाले संयतके अन्तिमसमयमें होते हैं । यहाँपर सर्वजघन्य प्रतिपातस्थान उत्कृष्ट संक्लेशसे मिथ्यात्वको जानेवाले संयतके अंतिम समयमें होता है। जघन्यसे अनन्तगुणीभूत इन्हीं का उत्कृष्ट प्रतिपातस्थान तत्प्रायोग्य संक्लेशसे मिथ्यात्वको जानेवाले संयतके अन्तिम समयमें होता है । ००००००००००० ००००००००००० । अन्तर । असंयतसम्यक्त्वको जानेवाले संयतके ये प्रतिपातस्थान