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लब्धिसार
[ गाथा २३२ आगे स्थितिबन्धके कमकरणकाल में स्थितिबन्धोंका प्रमाण बताने के लिए कहते हैं__ एवं पल्ले जादे बीसीया तीसिया य मोहो य ।
पल्लासंखं च कमे धंधेण य वीसियतियाभो ॥२३२॥
अर्थ---वीसिया ( नाम व गोत्र कर्म ), तीसिया ( ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, वेदनीय ) और मोहनीय कर्मके स्थितिबन्धका जो क्रम पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धके समय है वही क्रम पल्यके असंख्यातवेंभाग स्थितिबन्धमें भी रहता है ।
विशेषार्थ-नाम व गोत्रकर्मके पल्योपमप्रमाण स्थितिवाले बन्धसे आगे अन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है, क्योंकि पल्योपमप्रमाण स्थिति वालेबन्धके हो जानेपर वहांसे लेकर संख्यात बहुभागोंका स्थितिबन्धापसरण होता है, यह नियम है । यहां से लेकर नाम और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर संख्यातगुणाहीन अन्य स्थितिबन्ध होता है तथा शेष कर्मोका जबतक पल्योपम स्थितिवाला बन्ध नहीं प्राप्त होता, तब तक प्रत्येक स्थितिबन्धके पूर्ण होने पर पल्योपमका संख्यातवांभाग हीन अन्य स्थितिबन्ध होता है । इसप्रकार हजारों स्थितिबन्धोंके बीत जाने पर ज्ञानाबरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मोंका पल्योपमवाला बन्ध होता है, क्योंकि डेढ़ पल्योपमप्रमाण विवक्षितपूर्व स्थितिबन्ध में से पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध के घटाने पर शेष बचे अर्धपल्योपममें एक स्थितिबन्धापसरणके आयामका भाग देनेपर संख्यातहजार संख्या ( स्थितिबन्धापसरणोंकी ) प्राप्त होती है। उस समय मोहनीयकर्मका तीसरा भाग अधिक पल्योपम स्थितिवाला बन्ध होता है, क्योंकि जहां तीसिय प्रकृतियोंका पल्योगमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है वहां चालीसिय प्रकृतिका कितना स्थितिबन्ध होगा इसप्रकार त्रैराशिक करके मोहनीयका तीसरा भाग अधिक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है।
तत्पश्चात् ज्ञानाबरणादि चार कर्मोंका भी जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह संख्यातगुणा हीन होता है और मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है, क्योंकि चार कर्मों के पल्योपम स्थितिवाले बन्धके बाद तब पल्योपमके संख्यात बहुभागवाला स्थितिबन्धापसरण प्रारम्भ हो जाता है, किन्तु मोहनीयकर्म पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध नहीं प्राप्त हुआ है। इसलिये उस समय मोहनीयका स्थितिबन्धापसरण पल्योपमके