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लब्धिसार
[ गाथा १६३ उससे उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल विशेष अधिक है, क्योंकि सभी कर्मोके अपूर्वकरणके प्रथमसमय में प्राप्त अनुभागकाण्डक सम्बन्धी उत्कीरणकाल यहां ग्रहण किया गया है । (२) उससे स्थितिकाण्डकका जघन्य उत्कीरणकाल और जघन्य स्थितिबन्धकाल ये दोनों तुल्य होकर भी संख्यातगुणे हैं, क्योंकि एक स्थितिकाण्डक रक्को रमाका स्पितिवन्धकाल के भीतर आगमोक्त संख्यातहजार अनुभागकाण्डक उत्कीरण काल होते हैं । यहाँ सम्यक्त्वप्रकृतिका अन्तिम स्थितिकाण्डक उत्कीराकाल तथा वहीं पर शेष कर्मों के भी स्थितिकाण्डक-उत्कीरणकाल और स्थितिबन्धकाल ग्रहण करने चाहिये । (३) ।
उनसे, उत्कृष्ट ये दोनों परस्पर तुल्य होकर भी, विशेष अधिक हैं, क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समय सम्बन्धी स्थितिकाण्डक उत्कीरण ब स्थितिबन्धकाल ये दोनों उत्कृष्ट रूप से ग्रहण किये गये हैं ।।४।। (गाथा १५३)
___उनसे कृतकृत्यसम्यग्दष्टिका काल संख्यातगुणा है, क्योंकि कृतकृत्य सम्यग्दृष्टि के काल में संख्यातहजार स्थितिबन्ध होते हैं ॥५॥ उससे सम्यक्त्वप्रकृतिका अपणकाल संख्यातगुणा है, क्योंकि मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियोंका क्षयकर पुनः आठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्कर्म का क्षय करनेवाले जीवका काल ग्रहण किया गया है ।।६।। उ पसे अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है, क्योंकि करणके संख्यात बहुभाग जाकर संख्यातवें भाग शेष रहने पर सम्यक्त्वप्रकृतिको क्षपणाके कालका प्रारम्भ होता है ।।७।। उससे अपूर्वकरणकाल संख्यातगुरणा है, क्योंकि अनिवृत्तिकरणके कालसे अपूर्वकरणके कालका सर्वत्र संख्यातमुरणे रूपसे अवस्थान होनेका नियम है ।।८।। उससे गुणश्रेणि निक्षेप विशेष अधिक है, क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण के कालसे विशेष अधिक प्रमाण गुणश्रेणियायामका निक्षेप विवक्षित है ।।६।। (गाथा १५४)
उससे सम्यक्त्वप्रकृतिका द्विचरम स्थितिकांडक संख्यातगुणा है । यह भी मात्र अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होकर पिछले पदसे संख्यातगुणा है ।।१०।। उससे उसका अन्तिम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है ।।११।। उससे आठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्कर्म शेष रहने पर जो प्रथमस्थितिकाण्डक होता है वह संख्यातगुणा है। यहां संख्यात समय गुणकार है ।।१२।। उससे जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। यहां पर कृतकृत्य सम्यग्दृष्टिके प्रथमसमयमें ज्ञानावरणादि कर्मसम्बन्धी जघन्य आबाधाका ग्रहण है ।।१३।। उससे