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गाथा १६० ] लब्धिसार
[ ११६ ____ अर्थ-मिश्रद्विक अर्थात् मिश्रमोहनीय (सम्य ग्मिथ्यात्व) और सम्यक्त्वमोहनीय इन दोनों प्रकृतियोंकी अपनी अपनी अन्तिमफालियोंका द्रब्य कुछकम डेढ़गुणहानि गुरिणत समयप्रबद्धप्रमाण है । पूर्वोक्त प्रकार उन दोनों अन्तिमफालियोंके द्रव्य में पल्यके असंख्यातवेंभागका भाग देने पर एक भाग गुणश्रणा निक्षेपमें दिया जाता है ।
गुणश्रेणि पायामरूप अन्तर्मुहर्तकाल कम आठवर्ष प्रमाग ऊपरकी स्थितियों में चरमावलिपर्यन्त ? सदृश चय से हीन इस रचनारूप शेष बहुभाग द्रव्य दिया जाता है।
सम्यक्त्वमोहनीय की आठ वर्ष स्थिति करने के समयसे लेकर ऊपर सर्वत्र उदयादि अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम है तथा सम्यक्त्वमोहनीयकी स्थितिमें स्थितिखंड का आयाम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । इसके प्रागे एक-एक स्थितिकांडक द्वारा अन्तर्मुहूर्तअन्तर्मुहूर्त स्थिति घटाता है।
विशेषार्थ- जिस समय सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिसत्कर्म आठवर्षप्रमाण होता है, उस समय में (पतित) होनेवाली अपनी अन्तिमफालिके द्रव्य के साथ सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिम फालिको ग्रहरणकर सम्यक्त्वके उपरिम आठवर्षप्रमाण निषेकोंमें सिंचन करता हुमा' उदयमें स्तोक प्रदेशजको देता है। उससे ऊपरवर्ती समयसम्बन्धी स्थितिमें असंख्यातगुरणे प्रदेशजको देता है । इसप्रकार पहलेके गुणश्रेरिगशीर्षके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थिति में उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे प्रदेशजको देता है । सम्यग्मिथ्यात्वसम्बन्धी अन्तिमफालिके कुछकम डेढ़गुणहानि गुरिणत समयप्रबद्धप्रमारण द्रव्यको (अपकर्षणभागहारसे असंख्यातगुणे) पल्योपमके असंख्यातवें भाग से खण्डित कर एक भागमात्र द्रव्य को गुणश्रेरिगमें निक्षिप्तकर पुनः शेष बहुभागप्रमाण द्रव्यको गोपुच्छाकार से गुणश्रेणिशीर्ष से ऊपर अन्तर्मुहर्तकम आठ वर्षको स्थितियों में निक्षिप्त करता है । इसप्रकार गुणश्रेरिणशीर्ष से अनन्तर उपरिम प्रथम स्थिति में असंख्यातगुरणे प्रदेशज का निक्षेप होता है, क्योंकि द्रव्य बहुभागप्रमाण है और स्थितियायाम स्तोक है । उससे ऊपर सर्वत्र (अनन्तर उपनिधाके अनुसार) पाठ वर्षप्रमाण स्थितिके अन्तिम निषेकके प्राप्त होनेतक विशेषहीन विशेषहीन द्रव्य दिया जाता है। आठवर्षप्रमाण सर्व गोपुच्छोंके
१. जब सम्यग्मिथ्यात्व की चरमफालीका संक्रमण सम्यक्त्वमें होता है, तब सम्यक्त्वका ८ वर्षप्रमाण
स्थितिसत्कर्म होता है । (ज. ध. पु. ३ पृ. २०५)