Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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संस्मरण
३७
उन्होंने अपनी पगड़ी को चरणों में रखकर अकरणीय आप तेरापंथ का नाम हटा दें तो मैं मनचाहा चन्दा व्यवहार पर अत्यधिक अनुताप किया। उन्होंने चिरपोषित दे सकता हूँ अन्यथा नहीं। लेकिन यह शर्त इन्हें कब मनोगत शंकाओं का समाधान किया। यह इनकी तोव मंजूर थी ? बिना कुछ लिये ही उल्टे पांव लौट गये । तितिक्षा और अनहद समता का ही परिणाम था कि वे कभी हितों सात मिर
कुछ ही दिनों बाद किसी उद्घाटन के उपलक्ष में जिस उद्देश्य से आये थे उस उद्देश्य में वे सहयोगी बन सोहनलालजी दगड खिमाडा ग्राम में पहुंचे। आदर्श गये । इसी सन्दर्भ को परिपुष्ट करती हुई द्वितीय घटना कितन-निरीक्षण के लिये ये राणावास में पहुँच गये । भी अपनी अनुपम विलक्षणता लिए हुए है
उन्होंने स्कूल का सर्वांगीण निरीक्षण करके केसरीमलजी गोपीचन्दजी चोपड़ा, मोतीलालजी नाहटा, केसरीमलजी के चरणों में पगड़ी रखकर क्षमा माँगी और अपने कहे आदि पांच-सात वरिष्ठ व्यक्ति मिलकर कलकत्ता में हुए कटु शब्दों को वापस लिया। इस तरह इनके जीवन में फतेहपुरनिवासी सोहनलालजी दूगड़ के सन्निकट चन्दा अगणित अभद्र व्यवहार हुए पर ये अपने लक्ष्य से इंच मात्र लेने पहुंचे। आपकी रसीद में तेरापंथ का नाम बृहत् भी इधर-उधर नहीं खिसके । लक्ष्य पर मर मिटना इनके अक्षरों में छपा हुआ था। तेरापंथ का नाम पढ़ते ही जीवन का व्रत रहा है। सोहनलालजी क्रोध में तमतमा उठे और बोले कि यदि
00 पैसे-पैसे का हिसाब
0 मुनिश्री छत्रमल्ल वि०सं २०२४ में हमारा चातुर्मास प्रवास राणावास कर दिया करती है। मैं मेरी ओर से कुछ दूं या न हूँ, में था। वहाँ मुझे बताया गया, यहाँ की एक संगीत यह मेरी मर्जी है। अध्यापिका-श्रीमती निर्मला जैन जो कुशल अध्या
न जा कुशल अध्या- दर्शक विस्मित थे। किसी भी सार्वजनिक संस्था का पिका थी, उसने अथक परिश्रम से अनेक बालिकाओं को
प्रहरी इतना हो सजग होना चाहिए जो पैसे-पैसे का पूरा संगीत में तैयार किया। वह स्वयं भी यहीं पढ़ी थी।
लेखा जोखा-रखे । पर इतना अवश्य है उसके हाथ में वहीं अध्यापिका बन गई । उसका अभी विवाह हुआ था।
चाकू और मलहम दोनों होने चाहिए। जब वह ससुराल जाने लगी तब यहाँ की सेवा से निवृत्ति चाही । काकासा (केसरीमलजी) ने उसका सारा हिसाब जब घड़ी पुरस्कार में दी करके रकम उसके हाथ में दे दी। पर हिसाब करते समय उसी वर्ष काकासा ने छात्रावास के छात्रों के लिए शादी के दिनों को डेढ़ दिन की छुट्टी अधिक पड़ रही घोषणा की कि जो छात्र सात दिनों में अर्थ सहित श्रावक थी। उसके उन्होंने पैसे काट लिये। काकासा का यह प्रतिक्रमण कंठस्थ करके सुनायेगा उसे सौ रुपयों की घड़ी व्यवहार उसे, उसके अभिभावकों, दर्शकों तथा संरक्षकों को का पुरस्कार मिलेगा । सात लड़कों ने सात दिनों में अर्थ बहुत ही अखरा । कोई कुछ कह सके-ऐसी स्थिति तो थी सहित प्रतिक्रमण कंठस्थ कर लिया। जिनमें 'गंगादान' नहीं। क्योंकि नियम के विपरीत कुछ था नहीं।
नाम के पुरोहित ने तो मात्र तीन दिन में ही अर्थ सहित दूसरे दिन श्रीमती निर्मला भारी मन लिये जब विदा प्रतिक्रमण कंठस्थ कर लिया। चौथे दिन मध्याह्न में वह होने लगी तब प्रणाम करने के लिए काकासा के पास गई। मुझे सुनाने के लिए आया । मैं सुनने लगा तब पास बैठे श्री केसरीमलजी ने अपनी अलमारी में से निकाल कर सौ श्री केसरीमलजी ने मेरे हाथ से पुस्तक लेकर उससे रुपये की घड़ी उसे देते हुए कहा-बेटी ! संस्था का काम कहा--ला मुझे सुना । वह बिना किसी झेंप और झिझक संस्था के हिसाब से रहता है। वहाँ अनेक व्यक्तियों को के सुनाने लगा और सुनाता ही चला गया। श्री केसरीमल संभालना पड़ता है। नियम में थोड़ी सी गड़बड़ भी अनर्थ जी ने कभी क्रम से, कभी व्यतिक्रम से, कभी आगे से
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