Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
गाथा ४६. ५०, ५१
एकेन्द्रियादि जीवों की अपेक्षा स्थितिबंध में अस्पबहुत्व
का विचार
गाथा ५२
( ३६ )
स्थितिबंध के शुभत्व और अशुभत्व का कारण स्थितिबंध और अनुभागबंध सम्बन्धी स्पष्टीकरण
गाथा ५३, ५४
योग और स्थितिस्थान का लक्षण
१८७ - १६५
१८६
१६६-१६६
१६६
१६७
१६६ - २०६
२००
जीवों की अपेक्षा योग के अल्पबहुत्व और स्थितिस्थान का विचार
प्रमाण
स्थितिबंध के कारण अध्यवसायस्थानों का प्रमाण
२०२
२०६-२००
गांवा ५५.
अपर्याप्त जीवों के प्रतिसमय होने वाली योगवृद्धि का
२०६
२०७
२०८ - २१३
गाथा ५६, ५७
पंचेन्द्रिय जीव के जिन इकतालीस कर्म प्रकृतियों का बंध अधिक से अधिक जितने काल तक नहीं होता, उन प्रकृतियों और उनके अबन्ध काल का निरूपण माथा ५८
उक्त इकतालीस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अबन्धकाल का स्पष्टीकरण
गाया ५६, ६०, ६१, ६२
अध बंधिनी तिहत्तर प्रकृतियों के निरन्तरबंध काल का निरूपण
२०६
२१४ - २१५.
२१४
२१६-२२४
२१८
२२४-२३३
गाथा ६३, ६४
शुभ और अशुभ प्रकृतियों में सीव्र तथा मन्द अनुभाग बंध का कारण
२२४