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XXV Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
आपने सैकड़ों वर्षों से उपेक्षित बंगाल, बिहार और उड़ीसा में रहने वाले, भले बिसरे 'सराक' भाइयों को जैनधर्म की मुख्यधारा से जोड़ने का कष्ट साध्य कार्य कर, उनके अन्दर ज्ञान की 'अखण्ड ज्योति' प्रज्जवलित कर दी है। सराक ग्रामों की दुर्गम घाटियों में भ्रमण करते हुए, आपने सराकोत्थान हेतु किये गये कार्यों में तेजी लाने का हर संभव प्रयत्न किया है और निरन्तर उनकी प्रत्येक समस्या को शनैः शनैः सुलझा रहे हैं।
विद्वानों एवं जिनवाणी के आराधकों के प्रति आपकी आत्मीयता अनिर्वचनीय है। इसी जिनवाणी प्रेम के कारण आपने सरधना, रांची, अम्बिकापुर, मेरठ, सहारनपुर आदि में 'विद्वत् संगोष्ठियों का आयोजन किया था, जिसमें अनेक अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर आसानी से प्राप्त हो गये थे।'
इस वर्ष 30 व 31 अक्टूबर एवं 1 नवम्बर, 1998 को उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर मुनिराज के सान्निध्य में पं. जुगलकिशोर मुख्तारः 'व्यक्तित्व एवं कृतित्व' संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी में भारतवर्ष के सभी प्रान्तों से आये हुए पचास से अधिक विद्वानों, प्राध्यापकों ने अपने मौलिक चिन्तन से परिपूर्ण आलेखों का वाचन किया। इन सभी आलेखों ने यह सिद्ध कर दिया कि मुख्यतार सा का व्यक्तित्व हिमालय जैसा उन्नत एवं प्रशान्त महासागर जैसा गंभीर था। वे निस्पृह समाजसेवी, अनुपलब्ध गन्थों के खोजी, शास्त्रोद्धारक, अत्यन्त दुरुह, दुखगाह एवं क्लिष्ट दार्शनिक कृतियों के हिन्दी भाष्यकार एवं प्रकाशक, जैन वाङ्मय के अद्वितीय विद्वान् थे।
ऐसे साहित्य मनीषी का विनयांजलि कार्यक्रम तथा अभिनन्दन बहुत पहले हो जाना चाहिये था, परन्तु 'जब जागे तभी सबेरा'। परम पूज्य उपाध्याय ज्ञान सागर जी की दूरदृष्टि एवं वीरसेवा मंदिर ट्रस्ट के मंत्री डॉ. शीतलचन्द जी की कृपा से इस कार्य की पूर्ति हुई। अब हमें मुख्तार सा. जैसे समाज सुधारक, कवि, इतिहासज्ञ, साहित्यकार का 'स्मृति ग्रन्थ' प्रकाशित कर उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाने का कार्य करना ही चाहिए। यह कार्य वीर सेवा मंदिर या वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट आसानी से कर सकता है। वे तो इस संस्था के जन्मदाता थे।
डॉ. रमेशचन्द जैन जैन मन्दिर के पास, बिजनौर, उ. प्र.