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पं जुगलकिशोर मुखतार "युमवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व आत्मा को परलोक में सुख-शान्ति की प्राप्ति होवे और कुटुम्बीजन को धैर्य मिले।
इस प्रकार निबन्धों में उल्लिखित व्यक्तियों के व्यक्तित्व से मुखार जी के व्यक्तित्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। मुख्तार जी आदर्श व्यक्तियों के स्नेही रहे हैं। यह स्नेह इस तथ्य का प्रमाण है कि मुख्तार जी का आदर्श जीवन रहा है। वे निबन्धों में दर्शाये गये महान व्यक्तियों के सम्पर्क में रहे। उनसे उन्होंने महानता ग्रहण की। जैन धर्म, जैन साहित्य तथा जैन साहित्यकारों के प्रति मुख्तारजी का समर्पण भाव था। वे सेवाभावी थे, स्वयं सेवा करते और आवश्यकता पड़ने पर दूसरों से सेवा करने के लिए आग्रह करने में संकोच नहीं करते थे। बाल विकास के हितैषी थे। अपनी पुत्रियों के जेवर से सन्मति-विद्या-विनोद बाल संस्था की स्थापना करना उनके इस स्नेह का परिचायक है। वर्णी जी के भक्त रहे हैं। विद्वानों का सम्पर्क उनकी गुणग्राहिता का प्रतीक है। उनका ऐसा महान प्रभावशाली व्यक्तित्व था जिससे कि ब्र शीतलप्रसाद, पं प्रेमी जी, पं. चैनसुखदास जी, पं सुखलाल जी, आचार्य तुलसी, बाबू छोटेलाल जी जैसी देश की महान विभूतियाँ प्रभावित हुए बिना न रह सकी।