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५ जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
तेरहवाँ निबन्ध है - प चैनसुखदास जी का अभिनन्दन
मुख्तार जी ने प्रस्तुत निबन्ध में लिखा है कि संस्कृत पाठशाला को कॉलेज बना देने में पं चैनसुखदास जी के सद् प्रयत्न ही मूल हैं। वे कॉलेज के अध्यक्ष पद पर आसीन होते हुए भी कुली तक का काम करते थे। सरलता तो उनमें खूब थी, वे भद्र परिणामी, विद्याव्यसनी, सेवाभावी, सादा रहनसहन के प्रेमी और सच्चरित्र थे। उनमें विचार सहिष्णुता भी थी। सच्चे सेवकों और उपकारियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना जीवित समाज का लक्षण है। पंडित जी ने जयपुर समाज के लिए बहुत कुछ किया है। वे सुलेखक होने के साथ-साथ निर्भीक समालोचक भी हैं। सबके काम आते हैं, सबसे प्रेम रखते हैं और प्रायः गम्भीर मुद्रा में रहते हैं।
चौदहवें निबन्ध का शीर्षक है - प सुखलाल जी का अभिनन्दन
इस लेख मे मुख्तार जी ने पं सुखलाल जी के अभिनन्दन के समाचार पाकर सम्मान निधि मे हर्ष स्वरूप १०० रुपये भेजने का भी उल्लेख किया है। इससे मुख्तार जी की गुणग्राहिता का अनुमान लगाया जा सकता है। मुख्तार जी की दृष्टि में प सुखलाल जी अपने व्यक्तित्व के एक ही व्यक्ति रहे हैं। उन्हें तलस्पर्शी ज्ञान रहा है। वाणी और लेखनी दोनों मार्गो से उन्होंने खुला वितरण किया है। वे उदारता, नम्रता, गुणग्राहिता एवं सेवाभाव जैसे सद्गुणों के सम्मिश्रण रहे हैं। अतिथि सत्कार उनका बेजोड़ रहा है। मुख्तार जी ने लिखा है कि उन्हें उनके यहाँ एक महिने से अधिक समय तक घर पर ठहरने
का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनका आतिथ्य पाकर मुख्तार जी ने ऐसा अनुभव किया था मानो वे अपने घर पर कुटुम्ब के मध्य रहे हैं।
पन्द्रहवें आचार्य तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ शीर्षक निबन्धमें आचार्य तुलसी का व्यक्तित्व दर्शाया गया है। मुख्तार जी ने लिखा है - "आचार्य तुलसी ने बड़ी योग्यता के साथ अपने पद का निर्वाह किया है। वे अनुकूल
और प्रतिकूल आलोचनाओं पर हर्षित और क्षुभित न होकर कर्तव्य की ओर अग्रसर रहे। उन्होंने समदर्शित्व और सहनशीलता को अपनाया ज्ञान और चारित्र को उज्ज्वल तथा उन्नत बनाया। अणुव्रत आन्दोलन के द्वारा आगे बढ़ें हैं वे।"