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पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
छठा निबंध 'महत्त्व की प्रश्नोत्तरी' शीर्षक से है। यह प्रश्नोत्तरी महाराजा अमोधवर्ष कृत प्रश्नोत्तर - रत्नमालिका के आधार पर नये ढंग से संकलित की गई है। इसके कुछ प्रश्न और उनके उत्तर दृष्टव्य हैं। 1. संसार में सार क्या है ? उत्तर - मनुष्य होकर तत्वदृष्टि को प्राप्त करना और स्व-पर के हित साधन में सदा उद्यमी रहना। 2. प्रश्न- अन्धा कौन है ? उत्तर - जो न करने योग्य कार्य के करने में लीन है। 3. प्रश्न- बहरा कौन है ? उत्तर - जो हित की बातें नहीं सुनता। 4. प्रश्न-नरक क्या है? उत्तर- पराधीनता का नाम नरक है।
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सातवाँ निबन्ध 'जैन कॉलोनी और मेरा विचार' शीर्षक से है, जिसमें इन्होंने सेवा की भावना से अच्छे नैतिक संस्कारों के विकास हेतु जैन कॉलोनी बसाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि जैन-जीवन शैली के जीतेजागते उदाहरण एकत्रित हों और अन्य लोग भी तदनुसार अपना विकास कर सकें ।
अष्टम "समाज में साहित्यक सद्रुचि का अभाव" नामक निबंध संकलित हैं, जिसमें जैन समाज में पूजा-प्रतिष्ठाओं, मंदिर-मूर्ति निर्माण और अन्यान्य प्रदर्शनों के प्रति अतिशय रुचि और नष्ट हो रहे शास्त्रों, साहित्य के नवनिर्माण, प्रकाशन, उद्धार आदि के प्रति अरुचि को देखकर 'मुख्तार जी' ने अपनी वेदना प्रकट की है। जैन साहित्य के उद्धार, उन्नति और प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अनेक सुझाव प्रस्तुत किये हैं।
नवम 'समयसार का अध्ययन और प्रवचन' शीर्षक निबंध है। यह मई १९५३ में अनेकान्त में प्रकाशित हुआ था । इसमें आपने समयसार को बिना गहराई के समझे इसके प्रवचन करना और उन्हें छपवा लेना आदि की प्रवृत्ति की आलोचना की है।
दसम 'भवादभिनन्दी मुनि और मुनि निंदा' नामक निबंध में लेखक ने 'संसार के कार्यों के प्रति रुचि रखने वाले मुनियों का विस्तृत विश्लेषण करके ऐसे मुनियों की आलोचना करने वालों को 'मुनि निंदक' कहकर लांछित करने वालों पर टिप्पणी की है। वस्तुतः मुनि धर्म का मुख्य उद्देश्य आत्म