Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 359
________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements "धीमान् और श्रीमान् की बातचीत" नामक द्वितीय निबंध बहुत ही समसामयिक है, क्योंकि व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा और नामवरी के लिए जिनालयों का निर्माण तो करवा लेते हैं परन्तु स्वयं पूजा/अभिषेक / भक्ति नहीं करते बल्कि मासिक वेतन भोगी पुजारी या या नौकर रख लेते हैं। इन्हीं बातों का उल्लेख पं. जी ने उस निबंध में किया है। जिनेन्द्र भगवान की पूजा / भक्ति सौधर्मइन्द्र करता है जो एक भवावतारी होता है। अतः हमें स्वयं अपने कल्याणार्थ पूजन भक्ति करनी चाहिए। पं. जी की पंक्तियाँ युगवीर निबंधावली पृ 760 दृष्टव्य हैं - 308 44 " यह लज्जा की बात नहीं है कि जिन भगवन्तों की पूजा को इन्द्र / अहमिन्द्र/चक्रवर्त्यादिक राजा बड़े उत्साह के साथ करते हैं, स्वयं न करके नौकर से कराना चाहते हैं । " आप उसको और आगे कहते हैं कि - 'भगवत् (पचपरमेष्ठी) की पूजा और भक्ति वह उत्तम वस्तु है, ' कि इस ही के प्रभाव से प्रथम स्वर्ग का इन्द्र कुछ भी तप-संयम और नियम न करते हुए भी एक भवधारी हो जाता है। अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करता है।" अतः स्पष्ट हो जाता है कि जिन भगवन्तों की पूजा / भक्ति स्वयं उत्साह व लगन के साथ करनी चाहिए ताकि स्वयं कल्याण प्राप्तकर सके । बनारसीदास जी भी 'सूक्ति मुक्तवली के पद्यानुवाद पृ. 5 पर जिन पूजन की महिमा का वर्णन करते हैं - देव लोक ताको घर आँगन, राजरिद्ध सेवै तसु पाय, ताके तन सौभाग आदि गुन, केलि विलास करें नित आय। सो नर तुरत तरै भवसागर, निर्मल होय मोक्ष पद पाय, द्रव्यभाव विधि सहित 'बनारसी" जो जिनवर पूजै मन लाय । अतः पूजन / भक्ति स्वयं करने से पुण्य बंध होता है और अन्य को प्रेरणा मिलती है। सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आचार्य सोमप्रभ स्वामी सूक्तिमुक्तावली में जिनपूजन महिमा के वर्णन में लिखते हैं -

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