Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 363
________________ 312 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements आत्मा को बंधन में डाले, जिसके कारण आत्मा का पतन हो, जो आत्मा के आनंद का शोषण करे और आत्म शक्तियों का क्षय करे वह पाप है, पं. मुख्तार जी के ही शब्दों में यु वी निबंधावली पृ 773 पर दृष्टव्य है - __"बहुत से दुष्टों ने इस लोभ ही के कारण अपने माता-पिता और सहोदर तक को मार डाला है। कन्याविक्रय की भयंकर प्रथा इस देश में प्रचलित है।"" आचार्य विद्यासागर महाराज मूकमाटी महाकाव्य पृ. 386 में कन्याविक्रय की प्रथा पर खेद व्यक्त करते हैं खेद है कि लोभी पापी मानव पाणिग्रहण को भी प्राण ग्रहण का रूप देते हैं। एक नीतिकार तो देश व देशवासियों को धिक् शब्द का प्रयोग कर चिन्तित होता है - धिक्कार योग्य यह देश जहाँ, मानव पशुता पर तुला हुआ। लड़के-लड़की के विक्रय का, बाजार जहाँ पर खुला हुआ। ऐसी विषम स्थिति अभी भी बनी हुई है जिसमें लोभ की पराकाष्टा झलकती है। पं. जी आगे इसी निबंध मे लोभ के वशीभूत मानवों की दृष्टि को उजागर करते हुए उस समस्त सद्विद्याओं के हास का कारण मानते हैं, जो दृष्टव्य है - "जो भारत अपने आचार-विचार में, अपनी विद्या चतुराई और कलाकौशल में तथा अपनी न्याय परायणता और सूक्ष्म अमूर्तिक पदार्थों तक की

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