Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 362
________________ 311 प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व शर नहीं वह अधम नीच है पापी से पापी है। जिसने पर जीवों की कीमत निज से ना ऑकी है। हिंसक बनकर कभी किसी का, होता बेड़ा पार नहीं। किया प्रकृति ने शाकाहारी, नर का मांस अहार नहीं। वही पंडित जी तर्कपूर्ण शिक्षा प्रदान करते हुए आगे लिखते हैं - गूथस्य मरणं नास्ति, नास्ति गूथस्य वेदना। वेदनामरणभावात् को दोषो गूथभक्षणे॥ अर्थात् जिस हेतु से आप मांस भक्षण को निर्दोष सिद्ध करते हैं आपके उसी हेतु से विष्ठा भक्षण भी निर्दोष सिद्ध हो जाता है, क्योंकि विष्ठा का न मरण होता है न ही वेदना, अतः सदोषपना नहीं ठहरता । एक को सदोष और दूसरे को निर्दोष मानने से आपका हेतु (वेदना मरणाभावात्) व्यभिचारी ठहरता है और उससे कदापि साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती। अतएव मास में त्रस/स्थावर जीवों की निरन्तर उत्पत्ति होती रहती है मांस खाने से उनका घात होने के कारण हिंसा का प्रादुर्भाव होता है और व्यक्ति के आचार-विचार में विकार उत्पन्न होता है इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति क्रूर, निर्दयी, निर्लज्ज हो जाता है। मानव में दया/ममता/करुणा विद्यमान होने से वह मानवतापूर्ण प्राणी है, जो शाकाहार से परिपूर्ण है, अतः शांति और धर्म की प्रभावना मानवता से परिपूर्ण मानव ही कर सकता है। कवि अपनी भावना व्यक्त कर रहा है - पशओं को हम काट रहे हैं, बझा दीप सख-शांति वाला। धर्म भटकता घूम रहा है, किसको पहनाएँ वरमाला॥ पंचम निबंध "पाप का बाप" में मुख्तार जी ने लोभ व लोभी की दुर्दशा एवं स्वार्थ को पराकाष्ठा का वर्णन किया है। यह चिरपरिचित दृष्टांत है, लेकिन पं. जी ने इसके माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों पर प्रहार किया है। मिलावट/रिश्वत/दुराचार/दहेज जैसी अनेक कुरीतियाँ हैं। ये सब पाप के अन्तर्गत आती है। जैनाचार्य कहते हैं कि "वैयक्तिक संदर्भ में जो

Loading...

Page Navigation
1 ... 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374