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विनोद शिक्षात्मक निबंधों की समीक्षा
निर्मल कुमार जैन जैनदर्शनाचार्य, जयपुर
सरसावा की पवित्र भूमि में जन्मे पं श्री जुगलकिशोर जी 'मुख्तार' बाल्यावस्था से ही विचक्षण बुद्धि और तर्कणाशक्ति से सम्पन्न, सरस्वती पुत्र थे। आपने समाज व राष्ट्र की विकृत दशा को देखकर राष्ट्रीय/सामाजिक/ दार्शनिक निबंध लिखकर राष्ट्र के लिए चिन्तन का मार्ग प्रशस्त किया।
परतन्त्र भारत को दुदर्शा देखकर आपके मन में उत्पन्न विचारों को श्री पं जुगलकिशोर जी 'मुख्तार' युगवीर कृतित्व और व्यक्तित्व पृ. 10 पर देखे जा सकते हैं।
"भारत के दुर्भाग्य के कारण अविद्या, असंगठन और मान्य आचार्यो के विचारो के प्रति उपेक्षा भाव है। जब तक इन मूलकारणों का विनाश नहीं होता, तब तक देश न तो स्वतन्त्र्य प्राप्त कर सकेगा और न ज्ञान-विज्ञान में प्रगति ही कर सकेगा। एक युग था, जब भारत जगत का गुरु था,पर अविद्या और असगठन के कारण आज यह पद दलित है, लांछित है और सर्वत्र अपमानित है। अतएव युवकों को सगठित होकर देशोत्थान के लिए कृत सकल्प होना चाहिए।"
___ युगवीर निबधावली द्वितीय खण्ड के चतुर्थ विभाग में पण्डित श्री जुगलकिशोर 'मुख्तार' जी ने विनोद शिक्षात्मक सात निबंध लिखे हैं जो कि हास्य-व्यग्य के माध्यम से सामाजिक परिवेश एवं नैतिक व अनेकान्त पूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं। लोकोक्तियों को माध्यम बनाकर स्वयं श्लोक बद्धकरके तर्क पूर्ण शिक्षा प्रदान की है। हृदय की विशालता व साम्यदृष्टि की महिमा, जिनायतनों के चमत्कार, जिनदर्शन की उत्कृष्टता सतोष परमसुख तक ले जाने का माध्यम है, विवेकपूर्ण निबंध का स्वरूप देकर पं जी ने सामाजिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर आचार-विचार की सर्वश्रेष्ठता को निबद्ध किया है।