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पं. जुगलकिशोर मुखार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व भीड़ नहीं है। हां, अनुप्रास और रूपक अलंकार पद-पद पर मेरी भावना की स्वाभाविक शोभा को शतगुणित कर रहे हैं। यथा -
जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिय॥ सब जीवों को मोक्ष-मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया। बुद्ध, वीर, जिन, हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो, यह चित उसी में लीन रहो।
मेरी भावना, पद क्रमांक 1 उक्त पद में पांच स्थानों पर अनुप्रास अलंकार है। ऐसी अन्यत्र एवं सर्वत्र अनुप्रास की रुनझुन सुनी जा सकती है।
विषयों की आशा नहिं, जिनके, साम्य-भाव धन रखते हैं। परधन, वनिता पर न लुभाऊँ, सन्तोषामृत पिया करूं। दीन-दुखी जीवों पर मेरे, ठरसे करुणा-स्रोत बहे। उक्त पंक्तियों में एवं अन्य स्थानों पर भी रुपक अलंकार है।
___ काव्य को विषयानुकूल प्रभावशाली बनाने में छन्द की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए विभिन्न रसों के लिए अलग-अलग छन्द चयन किया जाता है। उपयुक्त छन्द में रचित कविता को जब लय, ताल एवं आरोहावरोह के साथ सस्वर पढ़ा जाता है तब अभूतपूर्व आनन्ददायक भावों के झरने फूटने लगते हैं। "मेरी भावना" को पढ़कर श्रद्धालुजन कुछ ऐसा ही अनुभव करते हैं। ___ कवि ने इस रचना में भावानुकूल/विषयानुकूल छन्द का प्रयोग किया है। यह छन्द शान्तरस एवं माधुर्यगुण को प्रस्फुटित करने/चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। आप इस छन्द के साथ "मेरी भावना" को अपने चित्त में गहरे उतार सकते हैं। "आप इसे पंक्तिशः पढ़ते जाएं और फिर इसकी खुशबू को अपने फेफड़ों और अपनी चेतना में उतारते जाएं, फिर देखे इसका आध्यात्मिक जादू किस तरह इसने आपके रोम-रोम को मथ