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पं जुगलकिसोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग भवेत॥"
अतः महावीर के सिद्धांत स्वयं को परिवर्तित करके राष्ट्र को परिवर्तित करने का अनुपम साधन है यह सिद्धांत ही सतयुग के संचार का साधन है क्योंकि मूकमाटी महाकाव्य में आचार्य विद्यासागर महाराज ने पृ. 82-85 पर सतयुग की परिभाषा इस प्रकार दी है
"सत्युग उसे मान
बुरा भी "बूरां" सा लगा है सदा। सत की खोज में लगी दृष्टि ही
सत्-युग है बेटा।" इस प्रकार महावीर स्वामी के सिद्धांत सार्वभौमिक थे किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं। यदि महावीर के सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, अस्तेय जैसे सिद्धांतों को प्रत्येक व्यक्ति अपना ले तो वह सत् की खोज कर सकता है और हमारे देश में सतयुग का संचार हो सकता है।
"मीन संवाद" कविता के माध्यम से "युगवीर" जी ने यह दर्शाया है कि अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए मानव अपना धर्म भुलाकर कितने ही निर्दोषी, निरपराधी प्राणियों को हिंसा करने को तत्पर हो जाता है। उसे इसकी परवाह नहीं रहती कि आने वाले समय में उसकी क्या दशा होगी। इस कविता में जाल में फंसा हुआ मीन जब अपना निवेदन प्रस्तुत करता है तो स्वार्थी मानव का भी दिल दहल जाता है। मीन अपनी निर्दोषता बधिक के समक्ष प्रस्तुत करता है वह कहता है कि मैंने न तो कभी हिंसा की, न झूठ बोला, न चोरी की और न कभी कुशील का सेवन किया। मैं अपनी स्वल्प विभूति में ही संतुष्ट था। ईर्ष्या, घृणा से दूर, मैं संसार की किसी वस्तु पर अपना अधिकार भी नहीं करता हूँ, न मैंने किसी का विरोध किया न बुराई की, न किसी का धन छुड़ाया। मैं तो निःशस्त्र दीन अनाथ हूँ, मैंने सुना था -