Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 324
________________ 273 - पं जुगलकिशोर मुखर "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व और भी अनेक तर्क एवं उदाहरण प्रस्तुत कर मुख्तार साहब ने वीतराग देवों की पूजा-वन्दना को अत्यन्त आवश्यक नित्य करणीय कर्तव्य बताया है। परन्तु यह बात ध्यातव्य है कि देव-वन्दना पूजादि के समय जिनेन्द्र देव से आन्तरिक भावों का जुड़ना आवश्यक है। देव और पूजादि के बीच किसी प्रकार का प्रदर्शन अथवा नित्य पूजा करने के व्रत को निपटाने मात्र का भाव नहीं होना चाहिये। समन्तभद्र विचार-दीपिका का तीसरा निबन्ध हैवीतराग से प्रार्थना क्यों? कुछ लोगों का विचार है कि जब वीतराग अर्हन्त देव परम उदासीन एवं कृतकृत्य होने से कुछ करते-धरते नहीं तब पूजा उपासनादि के अवसरों पर उनसे बहुधा प्रार्थनाएं क्यों की जाती है और क्यों उनमें व्यर्थ ही कर्तृत्त्व का आरोप किया जाता है? जिसे स्वामी समन्तभद्र जैसे महान् आचार्यों ने भी अपनाया है। उक्त भ्रान्तजनों की शंकाओं का समधान करते हुए मुख्तार साहब कहते हैं कि सबसे पहली बात तो इस विषय में यह जान लेने की है कि इच्छापूर्वक अथवा बुद्धिपूर्वक किसी काम को करने वाला ही उसका कर्ता नहीं होता, बल्कि अनिच्छा पूर्वक अथवा अबुद्धिपूर्वक कार्य को करने वाला भी कर्ता होता है। वह भी कार्य का कर्ता होता है जिसमें इच्छा-बुद्धि का प्रयोग ही नहीं बल्कि सद्भाव नहीं होता। अथवा किसी समय उसका संभव भी नहीं हो ऐसे इच्छा शून्य तथा बुद्धि विहीन कर्ता कार्यों के प्रायः निमित्त कारण ही होते हैं और प्रत्यक्ष रूप में अथवा अप्रत्यक्ष रूप में उनके कर्ता जड़ और चेतन दोनों ही प्रकार के पदार्थ हुआ करते हैं। किसी कार्य का कर्ता या कारण होने के लिये यह जरूरी नहीं है कि उसके साथ में इच्छा-बुद्धि तथा प्रेरणादिक भी हों। यह उसके बिना भी हो सकता है। भले प्रकार से सम्पन्न हुए स्तुति-वन्दनादि कार्य इष्ट फल को देने वाले हैं और वीतराग देव में कर्तृत्व विषय का आरोप सर्वथा असंगत तथा व्यर्थ

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