Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 336
________________ मुख्तार साहब के साहित्य का शिल्पगत सौन्दर्य डॉ. सुशील कुमार जैन, कुरावली (मैनपुरी) खद्दर के परिधान से विभूषित जिनके मस्तिष्क में अगाध विद्वत्ता की लिपि उजागर है, ज्ञान की भास्वर रश्मियों से आलोकित वनवीथियों के पावन उन्नत वदन पर उदात्त मन की आभा को विकीर्ण करता हुआ प्रतिभावान कलाकार साहित्यकार के जीवन में संघर्ष होना अनिवार्य है। संघर्ष की भूमि में ऐसे तन्तु जन्म लेते हैं जिनसे कला तथा साहित्य का विकास होता है। उनके लेखन में और भाषणों में भी एक सुलझी हुई समीक्षात्मकता तुलनात्मकता अध्ययन तथा स्वतन्त्र चिन्तन भी यत्र तत्र दृष्टिगोचर होता है। इसी श्रृंखला में जैनदर्शन के एक मेधावी भाष्यकार जिनके अन्तरंग में अध्यात्म का चिरंतन और शाश्वत आलोक विद्यमान है, आचार्य समन्तभद्र की प्रायः समस्त कृतियों पर भाष्य ग्रन्थ लिखने वाले आचार्य पं. श्री जुगलकिशोर मुख्तार 20 वीं शताब्दी के प्रगल्भ वाग्मी, अनासक्त योगी तथा सरलता की प्रतिमूर्ति हैं। जैन साहित्य और उसके रचयिता आचार्यों के इतिवृत्त के सम्बन्ध में पं. श्री जुगल किशोर मुख्तार की देन अपूर्व है। ये संस्कृत के पठित पण्डित नहीं थे, किन्तु स्वत: अभ्यास करके ऐसी सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त की थी कि संस्कृत प्राकृत के शास्त्रों में से गूढ़ रहस्यों को पकड़ लेते थे। इनकी सूझबूझ और अनुसन्धान की शैली बेजोड़ थी। आपने जैन हितैषी में अनेक लेख जैनसाहित्य और जैनाचार्यों के सम्बन्ध में लिखे, जो बाद में पुस्तकाकार भी प्रकाशित हुए। स्व. सेठ माणिक चन्द जी की स्मृति में (जो बम्बई के मूल निवासी थे) एक ग्रन्थमाला स्थापित की गयी थी, उसमें अनेक अप्रकाशित ग्रन्थों को प्रकाशित करके जैन साहित्य की श्रीवृद्धि हुई। उसी ग्रन्थमाला से आचार्य समन्तभद्र का रत्नकरण्ड श्रावकाचार मुख्तार साहब की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हुआ। आचार्य समन्तभद्र और उनके कृतित्व के सम्बन्ध में तथा टीकाकार प्रभाचन्द्र के सम्बन्ध में मुखतार साहब ने अपने जीवन भर की शोध सामग्री के साथ प्रकाश डाला।

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