________________
पंजगलकिशोर मुख्तार "युगवीर"व्यक्तित्व एवं कृतित्व
287
7. योगसार प्राभृत भाष्य। 8. कल्याणमन्दिर स्तोत्र भाष्य (कल्याण कल्पद्रुम)
जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ, तत्त्वों की चर्चा, उनका समीक्षण, स्वाध्याय, वाङ्मय निर्माण, संशोधन, सम्पादन, निबन्ध, भाष्य - इन सभी में पारंगत कोई व्यक्ति मिलता है तो हम कह सकते हैं, वह हैं - आचार्य श्री जुगलकिशोर मुख्तार। आपने अथक परिश्रम कर जैन इतिहास में अपने प्रकार का पहला ग्रन्थ "ग्रन्थ परीक्षा" (दो भाग) लिखकर एक उद्भट समीक्षक के रूप में साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ किया। पं. नाथूलाल जी प्रेमी ने लिखा कि पिछले सैकड़ों वर्षों में कोई समालोचनात्मक ग्रन्थ इतने परिश्रम और विद्वत्ता के साथ नहीं लिखा गया।
श्री मुख्तार जी ने सामाजिक, राष्ट्रीय, आधार मूलक, भक्तिपरक और दार्शनिक विषयों पर अनेक गवेष्णात्मक एवं समाज सुधारात्मक निबन्ध लिखे जो "युगवीर निबन्धावली" दो भाग तथा "जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश" नामक ग्रन्थों में संकलित हैं। मुख्तार जी का स्वाध्याय, मनन, चिन्तन सदैव चलता ही रहता था। मुख्तार जी ने धर्म, संस्कृति और जैनत्व की रक्षा में अपना तन-मन-धन सब कुछ समर्पित कर दिया। यही कारण है कि आज के विद्वान उनका नाम आदर के साथ लेने में अपना गौरव समझते हैं। आचार्य पं. श्री जुगल किशोर जी मुख्तार मेरी दृष्टि में मूलतः कवि हैं। इसके बाद ही उन्हें निबन्धकार, आलोचक या इतिहासकार कहा जा सकता है; क्योंकि कवि ने प्रभू की अर्चना में अनेक पद्य लिखे हैं। यही कारण है कि उन्हें कवि "युगवीर" भी कहा जाता है। कवि ने सूक्ति, भक्ति और लघु काव्यों में भक्ति-भावना का विशेष चित्रण किया है। काव्य में कवि की कथन शैली, रस और अलंकारों का पुट, सरस कविता, शान्त और वैराग्य रस तथा प्रसंगवश कला का अभिव्यंजन सुन्दर बन पड़ा है।
पंडित जी ने अपने विसर्जन पाठ में विनय को प्रधानता दी है,जो निम्न पद्य से प्रकट है :