Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 340
________________ 289 प जुगलकिशोर मुख्तार "युगबीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व दोहा :-कर प्रमाण के मान लें, गगन नपै किहि भंत। त्यों तुम गुण वर्णन करत, कवि पावै नहिं अंत॥ उपर्युक्त पद्य में भाव और शैली की दृष्टि से पर्याप्त साम्य है। मात्रिक छन्दों का सफलता पूर्वक प्रयोग किया है। अनुप्रास, निदर्शना, अन्त्यानुप्रास आदि शाब्दिक अलंकारों के साथ काव्यलिंग आदि का भी प्रयोग सफलता पूर्वक किया गया है। दोहे में कवि ने देवाधिदेव के गुणों की प्रशंसा की है। यहाँ कवि कहते हैं - आपके अन्दर - अनन्तगुणों की खान है, उनका वर्णन कर पाना मुश्किल है। यहाँ कालिदास ने लिखा है : क्व सूर्य प्रभवो वंशः। क्व चाल्पविषया मतिः। इन्हीं भावों को कवि ने दोहे में लिखा है कि कहाँ सूर्य वंश और कहाँ अल्प विषयों को जानने वाला। कहने का तात्पर्य है-सूर्य की महानता का वर्णन अल्प विषयों को जानने वाला नहीं कर सकता। यही बात कवि ने अपने दोहे में कही है - देवाधिदेव का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता, उनमें अनन्त गुण विद्यमान हैं। उनका वर्णन हम संसारी प्राणी तो क्या देव लोग भी करने में असमर्थ हैं। कवि युगवीर जी ने भक्ति की उपलब्धियाँ अनेक बतलाई हैं। जो सेवक के मानस को समुज्ज्वल करती हैं। काले मेघों के प्रति आकृष्ट होता हुआ स्वाति की बूंद के लिये लालायित रहता है, चकोर चन्द्रमा की शीतल किरणों का पान करने हेतु उत्सुक रहता है एवं मयूर पावस कालीन जलदों को देखकर विमुग्ध हो उठता है, उसी प्रकार की तितिक्षा भक्त के मानस में आराध्य की शान्त मुद्रा देखने के लिये प्रतिक्षण उमड़ती रहती है। उपर्युक्त पद्यों में युगवीर ने जो भक्ति रस भर दिया है, वह देखते ही बनता है। यदि इन सभी पद्यों एवं अन्य लिखी हुई कविताओं को अपनी दृष्टि से ओझल कर दें तो कवि जी की मात्र 'मेरी भावना' में जो भाव मिलते हैं, वह सदैव उनकी गुणगाथा याद दिलाती रहेगी। यह छोटा-सा ग्यारह पद्यों का

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