Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 339
________________ 288 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements सम्पूर्ण विधि कर वीनऊँ इस परम पूजन पाठ में । अज्ञानवश शास्त्रोक्त विधि लें चूक कीनो पाठ में ॥ सो होहु पूर्ण समस्त विधिवत तुम चरण की शरण तैं । बंदौ तुम्हें कर जोरि के उद्धार जामन मरण तें H तुम रहित आवागमन आह्वानन कियो निज भाव में । विधि यथाक्रम निज शक्ति सम पूजन कियो अतिवाद में ॥ तीन भुवन तिहुँ काल में, तुमसा देव न और । सुख कारण संकट हरण, नमो "जुगल" कर जोर ॥ उपर्युक्त दोहे में कवि ने देवाधिदेव से प्रार्थना की है कि आप जैसा तीन लोक में कोई भी देव नहीं है। आप मेरे संकटों को दूर कर परम सुख देने की कृपा करें। मैं विनम्रभाव से दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ । यहाँ कवि भगवान के प्रति पूर्ण अनुराग प्रदर्शित कर रहा है। यहाँ श्लेष अलंकार है, भाव की प्रधानता है । कवि ने आत्म-सौन्दर्य का अनुभव कर उसे संसार के समक्ष उपस्थित किया है, जिससे वास्तविक आन्तरिक सौन्दर्य का परिज्ञान सहज में हो जाता है। इस दोहे में इतना सार भर दिया है जो मानव हृदय को स्वार्थ सम्बन्धों की संकीर्णता से ऊपर उठाकर लोक-कल्याण की भाव भूमि पर ले जाता है, जिससे मनोविकारो का परिष्कार हो जाता है। इसी प्रकार कवि ने 'शान्तिपाठ' में भी इष्ट देव को नमस्कार करने के उपरान्त भक्ति और स्तुति की आवश्यकता, गृहवास का दुःख, संसार का दुःख आदि का चित्रण किया है : शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव सुरपती चक्री करें। हम सारिखे लघु पुरुष कैसे यथाविधि पूजा करें ॥ धन क्रिया ज्ञान रहित न जानें रीति पूजन नाथ जी। हम भक्तिवश तुम चरण आगे जोड़ लीनो हाथ जी ॥ संसार भीषण विपिन में वसु कर्म मिल आतापियो । तिस दाह तैं आकुल चित्त है शांति थल कहुँ ना लियो || तुम मिले शांतिस्वरूप शांतिकरण समरथ जगपती । वसु कर्म मेरे शांत कर दो शांतिमय पंचम गती ॥

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