Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 342
________________ जैनियों का अत्याचार एवं समाज संगठन की समीक्षा ___ मुकेश कुमार जैन शास्त्री, जयपुर परम हर्ष का विषय है कि सरस्वती पुत्र प्राक्तन विद्या विचक्षण, प्राच्य महाकवि, सिद्धान्ताचार्य पंडित जुगल किशोर जी मुख्तार जैसे मूर्धन्य विद्वान् के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विद्वत् सगोष्ठी के माध्यम से उनके द्वारा रचित पुस्तको, निबन्धो आदि का समीक्षात्मक परिचय प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने का प्रयास हम कर रहे हैं। पण्डित जी द्वारा लिखित 100 से अधिक निबन्ध? "जैनियों का अत्याचार एवं समाज संगठन की समीक्षा" जैसे विषय पर वक्तव्य देने का अवसर पाकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूँ। यद्यपि प. मुख्तार जी ने अपने निबधों में विषय की गूढता को सहज रूप मे प्रस्तुत करके उन विषयों को जन सामान्य की समझ के योग्य बनाया है। उनके द्वारा प्रत्येक विषय पर लिखा गया आलेख अपने आप में पूर्ण अर्थ को लिए हुए है। तथापि इस विद्वत् गोष्ठी के... व्याख्या करने का विनम्र प्रयास करूंगा। 'जैनियों का अत्याचार' जैसा विषय सुनकर ही हमें आश्चर्य होगा। जैनियों पर अत्याचार जैसे विषयों पर तो हमने ढेर सारी सामग्री पढी है, पढ़ते रहते हैं। किन्तु जैनियों द्वारा दूसरों पर अत्याचार जैसा विषय सुनकर लगता है कि यह विषय त्रुटि पूर्ण है। किन्तु मुख्तार जी ने इस विषय को जितनी गहराई के साथ प्रस्तुत किया है उससे हमें यह जानने में बहुत सरलता होती है कि वास्तव में जैनियों की स्थिति बहुत खराब है उनका समस्त अभ्युदय नष्ट हो गया है। बल-पराक्रम नष्ट हो गया और वे धर्म से च्युत हो गए हैं। आचार से भ्रष्ट हो गए हैं। जैसा हम जानते हैं कि मनुष्य का उत्थान एवं पतन अपने ही कर्मों से होता है। अत: यह स्वतः ही सिद्ध है कि जैनियों की वर्तमान दशा उनके कर्मों का ही फल है यानि जैनियों ने दूसरे के ऊपर अत्याचार किए।

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