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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
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अन्ततोगत्वा श्री मुख्तार सा को ही 'जिनशतकम्' छोड़कर अन्य चार ग्रन्थों के अनुवाद स्वयं करने पड़े। अदम्य साहस के धनी मुख्तार साहब जब युक्त्यानुशासनम् का अनुवाद कर रहे थे। उस समय उक्त ग्रन्थ का एक तिहाई ही अनुवाद हो पाया था कि उसको बक्से में रखकर मुख्तार सा. दि. जैन परिषद् के अधिवेशन में कानुपर गये हुए थे। वहाँ उनका बक्सा चोरी चला गया। तत्पश्चात् काफी लम्बे समय तक उनका अनुवाद का कार्य रुका रहा। परन्तु मुख्तार सा हिम्मत नहीं हारे और 'देहं वा पातयेयं कार्य वा साधयेयम्' के अनुसार वे उसके अनुवाद में पुनः जुट गये और उसको पूर्ण किया। जब वे समीचीन धर्मशास्त्र के अनुवाद का कार्य कर रहे थे, उस समय उन्होंने समन्तभद्र के सभी ग्रन्थों की शब्द-सूची बनाई और उनके तत्कालीन अर्थ की खोज की, उस समय समन्तभद्र के ग्रन्थों में उस शब्द का जो अर्थ प्रचलन में रहा, उसी को रखा, शब्दाडम्बर में नहीं पड़े। उदाहरण के लिए उस समय 'पारव्रण्डि' का अर्थ साधु होता था। वही अर्थ ढूँढकर रखा गया।
यदि गहराई से विचार किय जाये तो मुख्तार साहब द्वारा समन्तभद्र के ग्रन्थों का मात्र अनुवाद नहीं किया गया, अपितु अनुवाद के साथ उन्होंने उन पर हिन्दी में भाष्य ही लिख डाले। कहीं-कहीं पर तो उनकी लेखनी इतनी विस्तृत चलती गयी कि जब तक कारिका का पूर्ण अर्थ नहीं खुल गया, तब तक रुकी नहीं। यहाँ यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि समन्तभद्र पर अकलंक, विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र और वसुनन्दि के पश्चात् पं. जुगल किशोर मुख्तार ने गम्भीर अन्वेषण, विश्लेषण एवं जैनेतर शास्त्रों के गहन अध्ययन पूर्वक अनुवाद के साथ जो भाष्य लिखे वे ग्रन्थ के मौलिक स्वरूप को सुरक्षित रखे हुए जैन दर्शन के गूढ़ रहस्यों की पों को खोलते हैं। मुख्तार सा. ने समन्तभद्र पर जितना लिखा उतना आज तक कोई विद्वान् नहीं लिख सका। जो कुछ भी लिखा भी गया वह 'मुख्तारोच्छिष्ट' है। कतिपय विद्वानों ने तो मुख्तार साहब के नामोलेख बिना ही उनके भाष्य ग्रन्थों से पृष्ठ के पृष्ठ अपने ग्रन्थों में उतार लिए।
पं. नेमीचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य लिखते हैं कि "आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' के भाष्यों में मौलिक प्रतिभा दिखलाई पड़ती है। इन भाष्यों