Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 330
________________ - पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व 279 जैन परम्परा का आचार्य स्वीकार किया जाये, पर सत्यान्वेषण और सर्वोदय दर्शन के साथ अन्य परम्पराओं से सामञ्जस्य एवं सौहार्द्र स्थापित करने की जो विचार पद्धति उन्होंने विकसित की, वह उनको विश्व के महान मनीषियों की कोटि में स्थान प्रदान कराती है। जो लोग उनको देश-काल के चौखटे में जकड़ने के प्रयत्न में लगे रहते हैं, वे उनके ज्ञान से ओझल होते जाते हैं। सत्य को किसी परिधि में बाँधा नहीं जा सकता। सत्य सत्य होता है, जो सभी के द्वारा स्वीकार होना चाहिए। मुख्तार साहब ने समन्तभद्र विषयक सामग्री की खोज के दौरान यह अनुभव किया कि उपलब्ध सामग्री समन्तभद्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालने के लिए पर्याप्त नहीं है, फिर भी उन्होंने अन्य सामग्री की प्रतीक्षा किये बिना ही संकलित सामग्री के आधार पर समन्तभद्र के जीवन परिचय एवं समय पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष देते हुए स्वामी समन्तभद्रः इतिहास' नामक पुस्तक प्रकाशित करा दी। समन्तभद्र से सम्बन्धित बिखरी हुई विपुल सामग्री को देखकर जान पड़ता है कि मुख्तार साहब के संकलन के चक्कर में संकलित सामग्री ही प्रकाशित न होने पाये। वस्तुतः समन्तभद्र, मुख्तार साहब के परम आराध्य थे और वे समन्तभद्र रूपी सूर्य को क्षणभर के लिए भी ढका नहीं रहने देना चाहते थे। समन्तभद्र को समझना और समझाना ही उनके जीवन का परम लक्ष्य बन गया था। उनकी दृष्टि में लोक-हित की अनुपम मूर्ति समन्तभद्र के ग्रन्थों में जैनधर्म, दर्शन का समस्त निचोड़ उपलब्ध होता है। सन् 1940 में मुख्तार साहब ने समन्तभद्र के सभी ग्रन्थों का हिन्दी अनुवादादि के साथ 'समन्तभद्र भारती' के नाम से एक ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना बनाई थी। जिसके अनुवाद का कार्य उस समय के माने हुए पण्डितों ने करना स्वीकार कर लिया था। पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य ने वृहत् स्वयम्भूस्तोत्रम् का, पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने जिनशतकम् का, न्यायाचार्य पं. महेन्द्र कुमार जी ने देवागम स्तोत्रम् का, पं. फूलचन्द्र जी शास्त्री ने युक्त्यनुशासनम् का और रत्नकरण्ड श्रावकाचार का अनुवाद स्वयं मुख्तार सा. ने करना स्वीकार किया था। जो भी कारण रहा हो पं. पन्नालाल और मुख्तार सा. को छोड़कर किसी भी पण्डित ने अनुवाद का कार्य करके नहीं दिया

Loading...

Page Navigation
1 ... 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374