Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 332
________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 281 की शैली-विषय प्रतिपादन की प्रक्रिया वैज्ञानिक है। समीचीन धर्म शास्त्र या रत्नकरण्ड श्रावकाचार का विषय तो मौलिक प्रतिपादन की दृष्टि से अत्यन्त उपादेय है। आचार्य 'युगवीर' ने अपने इस भाष्य द्वारा कितनी ही भ्रान्तियों का निराकरण किया है। श्री मुख्तार ने बौद्धिक दृष्टि से दिगम्बर परम्परा के संरक्षण का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उनका यह कार्य वर्तमान युग में उनके आराध्य आचार्य समन्तभद्र के कार्यों के तुल्य है। जब जिज्ञासु अध्येता आसन लगाकर इस महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना का अध्ययन करने लगता है तो उसके अर्धोन्मीलित नेत्रों के समक्ष समन्तभद्र की आकृति उपस्थित होती है और ऐसा आभास होता है कि 'युगवीर' में समन्तभद्र की आत्मा बोलती हो। समन्तभद्र सूत्रकार है और आत्मावतारी युगवीर भाष्यकार।" मुख्तार साहब कवि के रूप में 'युगवीर' उपाधि से विख्यात थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषा में कविताएँ लिखीं । संस्कृत में उनके द्वारा लिखी गयीं कविताओं में स्वामी समन्तभद्र से सम्बन्धित ग्यारह पद्यों की कविताएं महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें शब्द सौष्ठव एवं अर्थ विन्यास की मधुरता के साथ समन्तभद्र के प्रति मुख्तार सा. की गुरू के रूप में अटूट श्रद्धा एवं अगाध भक्ति दृष्टिगोचर होती है। वे समन्तभद्र को ऐसा गुरू मानते थे जो दैवज्ञ, मान्त्रिक, तान्त्रिक, सिद्ध, सारस्वत, वारिसद्धि प्राप्त और महावाद विजेताओं के अधीश्वर लोक जीवन के नायक और सर्वोदय तीर्थ के प्रतिष्ठायक थे। वहाँ शिवकोटि और शिवापत का उदाहरण देकर कुमार्ग से रक्षा करने की प्रार्थना की गयी है अपने स्तोत्र में मुख्तार सा. ने शास्ता समन्तभद्र की उस वाणी के द्वारा सन्मार्ग प्रदर्शन की अपेक्षा की है, जो सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति का मार्ग बतलाने वाली, तत्त्वों के प्ररूपण में तत्पर नयों की विवक्षा से विभूषित और युक्ति तथा आगम के साथ अविरोध रूप है। अधाविधि समीक्षक विद्वानों द्वारा समन्तभद्र के जीवनवृत्त पर जो कुछ भी लिखा गया है, उसका मूलाधार पं. जुगल किशोर मुख्तार द्वारा किये गये उल्लेख "इति फणिमंडलालंकारस्योरगपुराधिय-सूनोः श्री स्वामी समन्तभद्र मुनेः कृतौ आप्तमीमांसायाम्" पुष्पिका वाक्य, शान्तिवर्मा और कथाओं के विभिन्न सन्दर्भ रहे हैं। मुख्तार सा. ने उक्त पुष्टिका वाक्य को उस प्राचीन

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