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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
ताड़पत्रों पर लिखी हुई आप्त मीमांसा की प्रति का बताया है, जो श्रवणबेलगोला के दौर्बलि जिनदास शास्त्री के भण्डार में है समन्तभद्र के जन्म एवं पितृकुल के सम्बन्ध में विचार करने वाले श्री मुख्तार के उत्तरवर्ती सभी विद्वानों ने मुख्तार सा. के कथन का ज्यों का त्यों उपयोग किया है। किसी भी विद्वान् समीक्षक ने उक्त पाण्डुलिपि अथवा आप्तमीमांसा की अन्य ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों में उक्त पुष्पिका वाक्य को खोजने का प्रयत्न नहीं किया, जबकि दक्षिण भारत में उपलब्ध आप्तमीमांसा की अधिकांश ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों में उक्त पुष्पिका वाक्य पाया जाता है। यहां तक कि दक्षिणभारत से अन्य स्थानों पर पहुँची ताड़पत्रीय प्रतियों में भी वह परम्परा पाई जाती है। समन्तभद्र के आत्म-परिचय विषयक श्लोक ' आचार्योऽहं कविरहमहं इत्यादि' मुख्तार सा. ने ही सर्वप्रथम प्रकाश में लाया गया था।
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समन्तभद्र के समय के सम्बन्ध विद्वानों में अनेक विप्रतिपत्तियां रहीं हैं। मुख्तार सा ने अपने समय तक के विद्वानों के मतों का अकाट्य तर्कों द्वारा समीक्षण करके समन्तभद्र का समय विक्रम की द्वितीय तृतीय शताब्दी प्रतिपादित किया है।
मुख्तार सा. ने समन्तभद्र द्वारा रचित ग्यारह कृतियों का उल्लेख किया है, जिनमें वर्तमान में आप्तमीमांसा, युक्त्यानुशासनम्, स्वम्भूस्तोत्रम्, जिनशतकम् और रत्नकरण्ड श्रावकाचार ही प्राप्त होते हैं ।
जिस महाकवि ने राष्ट्रीय एकीकरण की पोषक 'मेरी भावना' जैसी कविता की रचना की हो। आबालवृद्ध सभी के कण्ठ जिस कविता से सुवासित हो उठते हों। आश्चर्य होता है उनके सद्गति प्राप्त करने के पश्चात् दि. जैन समाज ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे यह कहा जा सके श्री मुख्तार समाज को अब भी स्मरण में हैं। उनके विचारों का अध्ययन करने के पश्चात् लगता है कि उनके मन में ऐसे साहित्य सृजन की कल्पना थी, जिससे दिगम्बर वाड्मय की आकस्मिक रिक्तता को भरा जा सके। षड्खण्डागम के बाद, कुन्दकुन्द भारती, समन्तभद्र भारती जैसे ग्रन्थों को निकालने के पीछे उनका भाव भी यही रहा होगा।