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मुख्तार साहब की दृष्टि में समन्तभद्र
डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन, श्रावस्ती
जैन समाज समन्तभद्र के नाम से भलीभांति परिचित है। जैन परम्परा में आप्तमीमांसा आदि स्तुतिकाव्यों की रचना करने वाले समन्तभद्र का स्थान बाल्मीकि जैसा है, वहीं रत्नकरण्ड-श्रावकाचार जैनों के लिए मनुस्मृति के समान है। समन्तभद्र के स्तुति ग्रन्थ, जैनदर्शन विषयक अज्ञानान्धकार को दूर करने वाले परमोज्ज्वल परम प्रकाशवान ज्ञानदीप हैं। इन ज्ञान दीपों के प्रकाश में अनेक परवर्ती आचार्यों ने जैन दर्शन के खोये-बिखरे हुए चिन्तन को संजोने का सफल प्रयास किया है। अकलंक, विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र, वसुनन्दि और यशोविजय आदि आचार्यों ने समन्तभद्र को आधार बनाकर जैन दर्शन विषयक विशाल भाष्य ग्रन्थ लिखे। शिलालेखों, ताम्रलेखों, परवर्ती आचार्यों के आध्यात्मिक, दार्शनिक, चिकित्सा, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष आदि ग्रन्थों में समन्तभद्र के अवदान को श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया गया है। समन्तभद्र से सम्बन्धित विभिन्न उल्लेखों की विपुल सामग्री होने पर भी पं मुख्तार से पूर्व उसका एक जगह संकलन कर उनके जीवन, समय और गुणादि का उतना आकलन नहीं किया गया था, जितना कि अपेक्षित था; क्योंकि उन्नीसवीं-बीसवीं शती में कतिपय इतिहासकार और समीक्षक विद्वान् दार्शनिक इतिहास के सन्दर्भ में सामग्री की अनुपलब्धता अथवा साम्प्रदायिक विद्वेषवश भ्रममूलक निष्कर्ष निकालने लगे थे। पं. मुख्तार साहब ने अथक परिश्रम करके यत्र-तत्र बिखरे हुए सन्दर्भो को संकलित कर उनके आधार पर ईमानदारी पूर्वक सप्रमाण अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये, जिससे आगे चलकर भारतीय-दर्शनों के इतिहास में जैन दर्शन और समन्तभद्र के महत्त्वपूर्ण योगदान का मूल्याङ्कन हो सका।
मुखार साहब ने उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि समन्तभद्र के स्तुतिग्रन्थ तीर्थङ्करों को समर्पित होने के कारण उन्हें भले ही