Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 308
________________ 257 - - - प जुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व आध्यात्मिक ग्रंथ "समाधितंत्र" एवं आचार्य रामसेन के ध्यान-ग्रंथ "तत्वानुशासन" का भरपूर उपयोग किया है। 72 श्लोकों की व्याख्या में समाधितंत्र के 16 और तत्वानुशासन के 22 उद्धरण उन्होंने प्रस्तुत किये हैं। उक्त दोनों ग्रंथ योग और ध्यान को विशेष वर्णन करने वाले ग्रंथ हैं और मुख्तार जी ने दोनों ग्रंथों का अनुवाद भी विशद व्याख्याओं के साथ किया है तथा उनकी विस्तृत प्रस्तावनाएँ लिखी हैं। तत्वानुशासन की प्रस्तावना तों छोटे टाइप में छपने के बाद भी 90 पृष्ठों में छपी इससे यह स्पष्ट है कि पं. जुगलकिशोर जी को योग और ध्यान जैसे आध्यात्मिक विषयों का गहन अध्ययन था। समाधितंत्र, इष्टोपदेश जैसे ग्रंथ उनके नियमित पाठ से सम्मिलित रहे होंगे, उन पर निरंतर चिंतन चलता रहता होगा। भाष्यकार की विशेषताओं का वर्णन करते हुए डा. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने लिखा है कि - "भाष्यकार की सबसे प्रमुख विशेषता तटस्थता और ईमानदारी है। जो भाष्यकार प्राचीन लेखक के विश्लेषण में ग्रंथ के भावों का ही स्पष्टीकरण करता है, अपनी कोई बात सिद्धान्त के रूप में पाठकों के ऊपर नहीं लादता, वही वास्तविक भाष्यकार होता है। भाष्यकार के व्यक्तित्व में एक साथ मौलिक चिंतन, उस चिंतन को आत्मशात् कर सशक्त अभिव्यंजना की क्षमता एवं प्राचीन लेखक के प्रति अपार आस्था का रहना आवश्यक है। केवल दो भाषाओं की जानकारी होने मात्र से कोई भाष्य निर्माता नहीं हो सकता। भाष्य निर्माता बनने के लिये प्रतिभा, अभ्यास और अनेक भाषाविज्ञता एवं विषय संबंधी पांडित्य का रहना परमावश्यक है।" अध्यात्म-रहस्य के भाष्य में इन सब विशेषताओं का समावेश स्पष्ट परिलक्षित होता है। छोटे से ग्रंथ के अनुवाद एवं व्याख्याओं में भी पंडित जी ने पूरी लगन से श्रम करके अपने चिंतन के आधार पर विषय को सहज बोधगम्य बना दिया है। ग्रंथ के अंत में दो परिशिष्टों में 72 श्लोकों की अकारादि क्रम से पद्यानुक्रमणी तथा व्याख्या में उद्धृत वाक्यों की भी अकारादिक्रम से अनुक्रमणी देकर पंडित जी ने ग्रंथ के अध्ययन को और सुगम बना दिया है। व्याख्या में

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