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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personalty and Achievements
अनेकान्त के व्यवहारिक ज्ञान का दिग्दर्शन कराया गया है, जिसके द्वारा अनेकान्त तत्त्व विषयक समझ को विस्तृत परिपुष्ट एवं विकासोन्मुख किया गया है। __आज सम्पूर्ण विश्व में जिस तरह नित-नवीन विषमतायें पनप रही हैं वैसे ही विश्वशान्ति तथा व्यक्तिगत सुख चैन पर भी खतरे मंडरा रहे हैं ऐसी स्थिति में अनेकान्त का मानना समझना कितना आवश्यक है, इसे बतलाने की जरूरत नहीं है। वस्तुतः अनेकान्त के रस को जाने बिना सत्य को जाना और पहिचाना नहीं जा सकता। सत्य को पहिचाने और जाने बिना व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। और न जीवन में उतारा जा सकता है। बड़े-बड़े विद्वान्, धर्माचार्य और नेता तक इस अनेकान्त रूपी सत्य को न जानने के कारण भ्रम की स्थिति में रहते हुए इसका प्रतिपादन भी गलत ढंग से प्रस्तुत करते हैं। मुखार जी ने अनेकान्त जैसे गंभीर विषय को ऐसे मनोरंजक ढंग से सरल शब्दों में समझाया है कि बच्चों एवं विद्यार्थियों को आसानी से समझ में आ सके। पुस्तक पढ़ने से जनसाधारण को भी इस गूढ़ विषय में रस आता है और एक वैठक में वह पूरी पुस्तक पढ़े बिना नहीं रह पाता इसलिये इसका नाम 'अनेकान्तरसलहरी' सार्थक है।
पाठ-1. छोटापन और बड़ापन इस पाठ में अपेक्षा भेद से छोटापन और बड़ापन को समझाया गया है। अध्यापक वीरभद्र बोर्ड पर.तीन इंच की लाइन खींचकर विद्यार्थियों से पूछते हैं कि "बतलाओ यह लाइन छोटी है या बड़ी?"
विद्यार्थी कहता है यह तो छोटी है। तब अध्यापक इसी लाइन के पास एक इंच की दूसरी लाइन खींच देते हैं और फिर पूछते हैं - बतलाओ लाइन नं. १ छोटी है या बड़ी? विद्यार्थी तुरन्त उत्तर देता है- यह तो साफ बड़ी नजर आती है। अध्यापक पुनः प्रथम लाइन के ऊपर पांच इंच की बड़ी लाइन खींचकर पूछते हैं, तब विद्यार्थी असमंजस में पड़ जाते हैं कि जिस लाइन को अभी-अभी हमने बड़ी कहा था, वही अब छोटी नजर आने लगी। मुखार जी यहाँ अध्यापक के माध्यम से विद्यार्थियों को यह समझाने का प्रयत्न करते हैं