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प जुगलकिशोर मुखार "पुगवार" व्यक्तित्व एवं कृतिय
269 विधिवत् संस्कृत का शिक्षण प्राप्त न करने पर भी उन्होंने आचार्य समन्तभद्र स्वामी की जटिल ग्रन्थों का अनुवाद कर तन्निहित रहस्य सरल एवं सुबोध भाषा में प्रस्तुत किये। उन्होंने अपने ग्रन्थों में एकान्तवाद का खण्डन एवं अनेकान्तवाद का मण्डन किया। मुख्तार साहब प्रबल तार्किक थे। उन्होंने विकार का कारण बने हुए अनार्ष परम्परा का अनुकरण करने वाले भट्टारककालीन अनेक विषयों पर करारी चोट की।
वे जैन पुरातत्त्व एवं संस्कृति के वैज्ञानिक संशोधक थे। उन्होंने तर्कहीन धार्मिक पोंगापंथी की पोल खोल कर उनका अन्धानुकरण रोका। जैनियों में दस्सा, बीसा आदि के निरर्थक भेद-भाव के विरुद्ध उन्होंने खूब संघर्ष किया।
मुख्तार साहब में अनुसन्धान प्रवृत्ति अत्यन्त प्रबल थी। अनेकान्त पत्रिका में उनके अनुसन्धान कार्यों का भण्डार भरा हुआ है। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों आचार्य प्रभाचन्द्र का तत्त्वार्थ सूत्र, युक्त्यनुशासन, स्वयम्भू-स्तोत्र, योगसार प्राभृत, समीचीन धर्म शास्त्र, अध्यात्म रहस्य, अनित्य भावना, तत्त्वानुशासन, देवागम, सिद्धिसोपान, सिद्धभक्ति, सत्साधुस्मरण मंगलपाठ, आदि का भाषानुवाद करके ग्रन्थों में निहित गूढ तत्त्वों का विश्लेषण किया। नए-नए ग्रन्थों को खोजकर उन पर प्रकाश डालने के लिए आप सदा तत्पर रहते थे।
आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार आचार्य समन्तभद्र के अनन्य भक्त थे। आचार्य समन्तभद्र के ग्रन्थ महासमुद्र में से आपने अनेक विचार-रत्न निकाल कर जैन विद्या निधि की खूब अभिवृद्धि की। आचार्य समन्तभद्र दूसरी शताब्दी में उत्पन्न हुए थे। वे एक महान् तत्त्ववेत्ता थे। उन्होंने अपने समय में वीर शासन की सहस्रगुणित अभिवृद्धि की। ऐसा एक पुरातन शिलालेख में उल्लेख है। आचार्य समन्तभद्र के विचारों का सर्वत्र प्रचार करने की दृष्टि से आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार ने 'समन्तभद्र-विचार-दीपिका' नाम से अनेक भागों में आचार्य समन्तभद्र के विचार-रत्न जिज्ञासुओं के मध्य में बड़ी उदारता से वितरित किये हैं।
'समन्तभद्र-विचार-दीपिका' के प्रथम भाग में बहुचर्चित चार विषयों पर मुखतार साहब ने बहुत विस्तार से तर्क पूर्ण शैली में सांगोपाज विवेचन