Book Title: Jugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ समन्तभद्र-विचार-दीपिका- प्रथम भागः एक अध्ययन डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन साहिवावाद प्राच्य विद्या के महासागर, सिद्धान्तरत्न, सम्पादनकला विशेषज्ञ स्व. पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' ने जैन संस्कृति, साहित्य और समाज की जो तन-मन-धन से तन्मय होकर सेवा की है उसे जैन समाज कभी नहीं भुला सकता है। बहुत ऊँची स्कूल कालेज की उपाधि उनके पास नहीं थी, केवल मैट्रिक तक पढ़े थे, परन्तु गहन-स्वाध्याय, साहित्य उपासना एवं अभीक्ष्णज्ञानोपयोग के बल पर उन्होंने जिस विपुल साहित्य का सृजन किया है, जैन विद्या एवं संस्कृति के अनेक पक्षों को अन्धकार से निकाल कर प्रकाशित किया है, अनेक भ्रान्तिपूर्ण मान्यताओं को प्रमाणिक आधारों पर निर्णयात्मक स्थिति में पहुँचया है, यह सब देख-सुनकर बड़े-बड़े विद्वान् भी दांतो तले अंगुली दबाते हैं। उन्होंने जैन गजट, जैन हितैषी और अनेकान्त सदृश पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन कर जैन पत्रकारिता को गरिमा प्रदान की है। शास्त्र भण्डारों से खोज-खोज कर कितने ही महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों का, उनकी जीर्ण-शीर्ण पाण्डुलिपियों में अपना सिर खपाकर उद्धार किया, संशोधित एवं सुसम्पादित कर उनको प्रकाशित कराया। पुरातन जैन वाक्यसूची, जैनग्रन्थ प्रशस्तिसंग्रह, जैन लक्षणावली जैसे उपयोगी सन्दर्भ ग्रन्थ तैयार किये। अनेक दुर्बोध ग्रन्थों के अनुवाद भाष्य लिखे तथा अनेक ग्रन्थों की विद्वत्ता पूर्ण प्रस्तावनाएं लिखीं। कई लेखकों की नव प्रकाशित कृतियों को गम्भीर, विस्तृत एवं निष्पक्ष समीक्षाएं लिखीं। आपने महत्त्वपूर्ण, विवादास्पद सैद्धान्तिक विषयों पर लगभग 150 प्रामाणिक लेख लिखे। मुख्तारसाहब ने हिन्दी एवं संस्कृत दोनों ही भाषाओं में उच्च कोटि की कविताएँ लिखीं। हिन्दी में रचित 'मेरी भावना' ने तो इन्हें अमर ही कर दिया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374