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270 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements प्रस्तुत किया है। ये चार विषय है - 1. स्व-पर-वैरी कौन? 2. वीतराग की पूजा क्यों? 3. वीतराग से प्रार्थना क्यों? 4 पाप-पुण्य की व्यवस्था कैसे?
समन्तभद्र-विचार-दीपिका का प्रथम निबन्ध 'स्व-पर-बैरी कौन?' अनेकान्त सिद्धान्त को पुष्ट करने वाला तथा एकान्तवाद का खण्डन करने वाला है। निबन्ध के आरम्भ में मुख्तार साहब कहते हैं कि लोक में हम जिन्हें
अपना तथा पराया शत्रु समझते हैं, वे उतनी मात्रा में अपने-पराए शत्रु नहीं हैं जितने कि वे जो अनन्त धर्मात्मक वस्तु के किसी एक पक्ष को लेकर उसी का पोषण और समर्थन करते हुए उससे अन्य धर्मों की उपेक्षा तथा खण्डन करते हैं। प्रायः लोक में यह माना जाता है कि जो अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते हैं, छोटी उम्र में बच्चों की शादी कर देते हैं या हिंसा, झूठ, चोरी, कुशीलादि पापों में लिप्त रहते हैं, वे सब अपना तो अहित करते ही हैं साथ-साथ दूसरों को भी कष्ट पहुँचाते हैं। परन्तु मुख्तार साहब की दृष्टि में संसार में सबसे बढ़कर अपने तथा दूसरों के शत्रु वे हैं, जो एकान्त-ग्रह-ग्रस्त हैं अर्थात् जो लोग एकान्त के ग्रहण करने में आसक्त हैं सर्वथा एकान्त पक्ष के पक्षपाती अथवा उपासक हैं और अनेकान्त को नहीं मानते वस्तु में अनेक गुण-धर्मो के होते हुए भी उसे एक ही गुण-धर्म रूप अंगीकार करते हैं।
आचार्य समन्तभद्र की देवागम की कारिका को उद्धृत कर मुख्तार साहब अपने विचार की पुष्टि करते हैं -
कुशलाऽकुशलं कर्म परलोकश्च न क्वाचित् ।
एकान्त-ग्रह-रक्तेषु नाम स्व-पर-वैरिषु ॥ इस कारिका में इतना और भी बताया गया है कि ऐसी एकान्त मान्यता वाले व्यक्तियों में से किसी के यहाँ भी किसी के भी मत में शुभ-अशुभ कर्म की, अन्य जन्म की, कर्मफल की तथा बन्ध-मोक्षादि की कोई व्यवस्था नहीं बन सकती।
वास्तव में प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है उसमें अनेक अन्त-धर्मगुण-स्वभाव अंग अथवा अंश हैं। जो मनुष्य किसी भी वस्तु को एक तरफ से देखता है- उसके एक ही अन्त-धर्म अथवा गुण-स्वभाव पर दृष्टि डालता है,