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प गुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व सापेक्षवाद का उपयोग नहीं करते। वैयक्तिक, कौटम्बिक, सामाजिक और राष्ट्रीय तथा विश्व अशान्ति का कारण केवल "ही" के आग्रह के सिवाय
और कुछ नहीं हो सकता। इस आग्रह का न होना ही सापेक्षवाद कहलाता है। विश्व शान्ति का सापेक्षवाद ही अमोघ उपाय है।
विश्व की सब उलझनें यदि सुलझ सकती है तो केवल ऐसे सिद्धान्त से, जो किसी भी विषय पर, एक दृष्टिकोण (One point of view) से विचार न कर विविध दृष्टिकोणों (By all points of view) से विचार करता है। यदि मनुष्य विश्व शान्ति और आनन्द का अनुभव करना चाहता है तो उसे सापेक्षवाद के सिद्धान्तरूपी परमसरोवर में डुबकियाँ लगानी चाहिये। सापेक्षवाद ही विश्व-शान्ति का अचूक उपाय है।
गीर्भिर्गुरूणां परुषाक्षराभिः तिरस्कृता यांति नरा महत्त्वम्। अलब्धशाणोत्कषणा नृपाणां न जातु मौलौ मणयो वसंति॥ गुरुओं की कठोर अक्षरों वाली वाणी से तिरस्कृत मनुष्य महत्त्व प्राप्त करते हैं। सान पर घिसे बिना मणि राजाओं के सिर पर स्थान नहीं पाती। -पंडितराज जगन्नाथ (भामिनी विलास, प्रास्ताविक विलास)
गुरौ प्रणामो हि शिवाय जायते। गुरु को किया गया प्रणाम कल्याणकारी होता है।
-कर्णपूर (पारिजातहरण १/२९)
अंधो अंध पहं णितो, दूरमाणुगच्छइ। अन्धा अन्धे का पथप्रदर्शक बनाता है तो वह अभीष्ट मार्ग से दूर भटक जाता है। [प्राकृत]
-सूत्रकृवांग (११R१९)
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