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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
सहायक ग्रंथों की एक सूची भी दी गई है जिसमें प्राचीन आचार्य भगवंतों एवं आचार्यकल्प पदवी से विभूषित पं. आशाधरजी के 24 ग्रंथों के नामों का उल्लेख है। इससे व्याख्याओं पर प्रामाणिकता की मुहर लगती है।
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यह एक सुखद संयोग है कि " अध्यात्म-रहस्य" ग्रंथ की यह समीक्षा ग्रंथ लेखक के जन्मस्थान मंडलगढ़ (चित्तौड़) और भाष्यकार के जन्मस्थान सरसावा (सहारनुपर) के मध्य एक ऐसे मनीषी वात्सल्यमूर्ति मुनिराज उपाध्याय ज्ञानसागर जी के सानिध्य में हो रही है जिन्होंने विद्वानों के श्रम का सही मूल्यांकन किया है। वर्तमान पीढ़ी के विद्वानों को वे सतत प्रेरणा देते हैं तथा पुरातन विद्वानों के अवदान का स्मरण कराके उनके व्यक्तित्व कृतित्व को नये सिरे से व्याख्यायित कराते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि यदि उपाध्याय श्री की प्रेरणा से ऐसे उपक्रम निरंतर होते रहे तो जहां एक ओर प्राचीन विद्वानों की कृतियों से अनेक महत्वपूर्ण तथ्य उदघाटित होकर जिज्ञासुओं के समक्ष आयेंगे, वहीं शोधकर्ता विद्वानों को पर्याप्त अवसर, मार्गदर्शन एवं प्रेरणा मिलती रहेगी।
कबीर माला काठ की, कहि समझावे तोहि । मन न फिरावै आपणा, कहा फिरावै मोहि ॥
-कबीर (कबीर ग्रन्थावली, पृ. ४४)
यथापि नाम जच्चंधो नरो अपरिनायको । एकदा याति मग्गेन कुमग्गेनापि एकदा ॥ संसारे संसरं बालो तथा अपरिनायको । करोति एकदा प अपुञ्ञमपि एकदा ॥
जिस प्रकार जन्मांध व्यक्ति हाथ पकड़ कर ले जाने वाले व्यक्ति के अभाव में कभी मार्ग में जाता है तो कभी कुमार्ग से। उसी प्रकार संसार में संसरण करता अज्ञानी प्राणी पथप्रदर्शक सद्गुरु के अभाव में भी कभी पुण्य करता है तो कभी पाप ।
[पालि]
- विसुद्धिमग्ग (१७/११९)