________________
225
प जुगलकिशोर मुख्तार "युगधीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
यह पद्य भी पदमनन्दि उपासकाचार का 44 वाँ है। यह उपासकाचार पदमनन्दिपंच विशंति में संग्रहीत है। नवपुण्यै -
"पडिगहमुच्चदठाणं पादोदयमच्वणं च पणमं च। मणवयणकायसुद्धी एसणसुद्धी य नवविहं पुण्णं।"
- रत्नक. श्रा. 4/23 टीका (वसुनन्दि उपासकाध्ययन 25) उक्त गाथा वसुनन्दि (प्रायः वि.सं. 12 वीं शती का अन्तिम भाग और 13 वीं का प्रारंभिक भाग) कृत उपासकाध्ययन की है। इस उपासकाध्ययन को श्रावकाचार भी कहते हैं। "पडिमह" इत्यादि उद्धरण की उपयोगिता एवं आवश्यकता पर विचार करते हुए पं. मुख्तार जी ने लिखा है कि "जान पड़ता है टीकाकार ने इसमें मूल के अनुरूप ही "नवपुण्यं" संज्ञा का प्रयोग देखकर इसे यहाँ पर उद्धृत किया है, अन्यथा, वह यशस्तिलक के "श्रद्धा तुष्टिः " इत्यादि पद्य को उद्धृत करते हुए उसके साथ के दूसरे "प्रतिग्रहोच्चासनं" पद्य को भी उद्धृत कर सकता था परन्तु उसमें इन 8 बातों को "नवोपचार"संज्ञा दी है जिसका यहाँ"नवपुण्यैः" पद की व्याख्या में मेल नहीं था। उसके सिवाय कुछ और भी विशेषता थी। इसलिए टीकाकार ने जानबूझकर उसे छोड़ा और उसके स्थान पर इस गाथा को देना पसंद किया।"
यशस्तिलक चम्पू का यह पद्य इस प्रकार है -
प्रतिग्रहोच्चासनपादपूजाप्रणामवाक्कायमनः प्रसादाः। विद्याविशुद्धिश्च नवोपचाराः कार्या मुनीनां गृहसंश्रितेन ॥ "परोपकाराय संतां हि चेष्टितं" इत्यभिधानात्।
- रत्नक.पा. /8 टीका सर्वेऽपि "बाहयाभ्यन्तरराश्चेतनेतरादिरूपा" वा।
- रत्नक. श्रा. 4/12 टीका