________________
248 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements
एगो में सासदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो।
सेसा में बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥
यह वाक्य तो इस ग्रन्थ का प्राण जान पड़ता है। ग्रन्थ के कितने ही पद्य कुन्दकुन्द के 'मोक्षप्राभृत' की गाथाओं को सामने रखकर रचे गये हैं (उनके संस्कृत रूपान्तर मात्र है)। ऐसी कुछ गाथाएँ पद्य नं.4,5,7, 10, 11, 12, 18,78, 102 के नीचे फुटनोटों में उद्धृत कर दी गयी है। एक उदाहरण नीचे दिया जा रहा है
जं मया दिस्सदे रूवं तण्ण जाणादि सव्वहा। जाणगंदिस्सदे णं तं तम्हा जंपोमि केण हं ॥ मोक्षप्राभृत २९ यन्मया दृश्यते रूपं तन जानाति सर्वथा। जानन दृश्यते रूपं ततः केश्न ब्रवीम्यहम् ॥ समाधितन्त्र १८
इससे स्पष्ट होता है कि समाधितन्त्र की विषयवस्तु पर आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का विशेष प्रभाव है।
ग्रन्थान्तरों पर पड़े प्रभाव का अन्वेषण
तुलनात्मक अध्ययन से मुख्तार जी की दृष्टि में यह बात भी आयी कि युक्ति,आगम तथा स्वानुभव पर आश्रित होने से समाधितन्त्र इतना प्रमाणिक और आकर्षक ग्रन्थ बन गया है कि उत्तरवर्ती आचार्यों के साहित्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। परमात्म प्रकाश' और 'ज्ञानार्णव' जैसे ग्रन्थों में इसका खुला अनुसरण किया गया है, जिसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत ग्रन्थ के पादटिप्पणों में दिखाये गये हैं। प्रतिपाद्यविषय एवं प्रतिपादनशैली का विश्लेषण
प्रतिपाद्य विषय और प्रतिपादनशैली का विश्लेषण मुख्तार जी ने इन शब्दों में किया है
"चूंकि ग्रन्थ में शुद्धात्मा के कथन की प्रधानता है और शुद्धात्मा को समझने के लिए अशुद्धात्मा को भी जानने की जरूरत होती है, इसी से ग्रन्थ में आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा ऐसे तीन भेद करके उनका