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254 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
छोटे से ग्रंथ अध्यात्म-रहस्य का मूल, अनुवाद और व्याख्या कुल 92 पृष्ठों में समाहित है, जबकि इस पर पंडित जी ने 32 पृष्ठ की प्रस्तावना लिखी है। इस प्रस्तावना में उन्होंने ग्रंथ का परिचय देते हुए उसकी खोज की कहानी प्रस्तुत की है। ग्रंथ के विषय का विवेचन वृहत् रूप मे करके विषय की अन्य प्रसिद्ध ग्रंथों से तुलना भी की है। ग्रंथकार का संक्षिप्त परिचय देते हुए ग्रंथ निर्माण का काल निर्णय भी तर्क सहित किया गया है।
मुख्तार सा. ने ग्रंथ की प्रस्तावना में आत्मा के गुणों की और विकास की चर्चा करते हुए अन्य दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित आत्मस्वरूप की मान्यमाओं का खण्डन भी किया है। पं. आशाधर जी ने "अध्यात्म-रहस्य" में विभिन्न विषयों जैसे आत्मस्वरूप, उसके साक्षात्कार का उपाय, शास्त्र और गुरू की उपादेयता, व्यवहार और निश्चय से गुरू का स्वरूप, मोक्षमार्ग का स्वरूप, व्यवहार और निश्चय रत्नत्रय, राग-द्वेष-मोह का स्वरूप, उसकी प्रवृत्ति का फल, अशुभ-शुभ और शुद्ध उपयोगों का स्वरूप, त्रिविध कर्मों का स्वरूप, हेय-उपादेय-विवेक आदि का बहुत अच्छा स्पष्ट विवेचन श्लोकों में किया है। पं जुगलकिशोरजी ने भी सभी विषयों की विवेचना अन्य ग्रंथों के उदाहरण देकर तथा अपने चिंतन के बल पर की है।
___ ग्रंथ के श्लोकों का पहले पंडितजी ने सरल हिन्दी में अर्थ किया है। फिर व्याख्या शीर्षक से उसका विस्तार किया है। व्याख्या सभी श्लोकों पर है जो आवश्यकतानुसार पांच पंक्तियों से लेकर आठ पृष्ठों तक में लिखी गई है। व्याख्या में आपने श्लोक के गूढ अर्थों को भी अत्यंत सरलता से इस प्रकार समझा दिया है कि विषय को गहराई से न समझने वाले भी उसका सामान्य बोध तो कर ही लेंगे। जैसे ध्यान का स्वरूप समझाने के लिये वे लिखते हैं -
"अब देखना यह है कि ध्यान किसको कहते हैं - तत्वार्थसूत्रदि ग्रंथों में "एकाग्रचिंतानिरोधों ध्यानं" जैसे वाक्यों के द्वारा एकाग्र में चिंता के निरोध को ध्यान कहा है। इस लक्षणात्मक वाक्य में एक, अग्र, चिन्ता और निरोध ये चार शब्द हैं। इनमें एक प्रधान का, अग्र आलम्बन का, चिन्ता स्मृति का और निरोध शब्द नियंत्रण का वाचक है और इससे लक्षण का फलितार्थ यह हुआ कि किसी एक प्रधान आलम्बन में - चाहे वह द्रव्य रूप हो या पर्याय रूप -