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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements दिया है । इस आधार पर मुख्तार जी ने ग्रन्थ का मुख्य नाम 'समाधितन्त्र' और उपनाम 'समाधिशतक' स्वीकार किया है। किन्तु डॉ. परशुराम लक्ष्मण (पी. एल.) वैद्य ने मुख्तार जी के मत पर आपत्ति करते हुए ग्रन्थ का मुख्य नाम समाधिशतक माना है, क्योंकि उनके अनुसार पद्यसंख्या मूलतः सौ ही है। ग्रन्थ में जो 105 पद्य मिलते हैं, उनमें से पद्यक्रमांक 2, 3, 103, 104 और 105 को वैद्य जी ने प्रक्षिप्त बतलाया है। किंतु मुख्तार जी ने अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर उक्त पाँचों पद्यों के प्रक्षिप्त होने का खण्डन किया है और सिद्ध किया है कि पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित पद्यों की संख्या 105 ही है। इस प्रकार जब 105 वाँ पद्य ग्रन्थकार द्वारा ही रचित है तब उसमें उल्लिखित समाधितन्त्र नाम भी ग्रन्थकार द्वारा ही दिया गया है, यह स्वयमेव सिद्ध होता है। अतः 'समाधितन्त्र' ही ग्रन्थ का प्रमुख नाम है। टीकाकार की पहचान
ग्रन्थ के संस्कृत टीकाकार का नाम प्रभाचन्द्र है। प्रभाचन्द्र नाम के अनेक मुनि, आचार्य तथा भट्टारक हो गये हैं। रत्नकरण्ड श्रावकाचार के टीकाकार का नाम भी प्रभाचन्द्र है। इनमें समाधितन्त्र के टीकाकार कौनसे प्रभाचन्द्र हैं, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। मुख्तार जी ने रत्नकरण्डश्रावकचार तथा समाधितन्त्र की टीकाओं की तुलना करके उनमें प्राप्त समानताओं के आधार पर सिद्ध किया है कि समाधितन्त्र के टीकाकार वही प्रभाचन्द्र हैं जिन्होंने रत्नकरण्डश्रावकचार की टीका की है। दोनों टीकाओं के मंगलाचरण पद्यों, मंगलाचरण के बाद के प्रस्तावना वाक्यों, प्रथमपद्य के सारांश-वाक्यों, परमेष्ठी पद की व्याख्याओं तथा टीकाओं के अन्तिम पद्यों में भाव, भाषा शैली
और छन्दों की अत्यन्त समानता है। उपसंहार
इस प्रकार वाङ्मयाचार्य पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार ने समाधितन्त्र की प्रस्तावना में विभिन्न तर्कों और प्रमाणों से ग्रन्थ के कर्ता और कृति के सर्वांगीण स्वरूप का उद्घाटन करने में अद्भुत कौशल प्रदर्शित किया है। जिससे स्वाध्यायियों और शोधार्थियों के लिये समाधितन्त्र के हार्द को हृदयंगम करना