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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
"मइलकेचुली दुम्मनी नाहे पविसिय एण। कहजीवेसइ धणियधर उज्झंते हियएण॥"
- रत्नक. श्रा. 1/19-20 टीका येनाज्ञानतमो विनाश्च निखिलं भव्यात्म चेतोगतम् । सम्यग्ज्ञानमहांशुभिः प्रकटितः सागारमार्गोऽखिलः स श्रीरत्नकरण्डकामलरविः संसृत्सरिच्छोषको जीयादेष समन्तभद्रमुनियः श्रीमान् प्रभेन्दुर्जिनः।
- रत्नक. श्रा. 5/29 टीका यह टीकाकार का अन्तिम प्रशस्ति वाक्य है।
"विग्गहगइमावण्णा केवलिणो सम्मुहदो अजोगी य। सिद्धा य अणाहारा सेसा आहारिणो जीवा॥"
- रत्नक. श्रा. 1/6 टीका यह गाथागोम्मटसार जीवकाण्ड में गाथा संख्या 666 पर प्राप्त होती है। इसका पाठ इस प्रकार है
विग्गहमादिमावण्णा केवलिणो समुग्धदो अजोगी य सिद्धा य अणाहारा सेसा आहारया जीया॥
"श्रद्धा तुष्टिर्भक्तिर्विज्ञानमलुब्धता क्षमा सत्यं । यस्यैते सप्तगुणास्तं दातारं प्रशंसन्ति॥"
__ - रत्नक श्रा 4/23 टीका (यशस्तिलक, कल्प 43) यह पद्य यशस्तिलकचम्पू (शक संवत् 881 वि. सं. 1016 ई. 950) के 43 वें "कल्प' का पद्य है। यशस्तिलक यशोधर-महाराजचरित के रूप में भी जाना जाता है। इसमें दाता के सात गुणों की चर्चा की गई है। वसुनंदिश्रावकाचार में यह गाथा 224 संख्या पर (प्राकृत में) प्राप्त होती है।
समन्तभद्र निखिलात्मबोधनं जिनं प्रणम्याखिलकर्मशोधनम्। निबन्धनं रनकरण्डके परं करोमि भव्यप्रतिबोधनाकरम्॥
- रत्नक. श्रा. 1/1 टीका