________________
प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्राप्त हुई, उसके लेखन कर्त्ता पण्डित रतनलाल हैं जिन्होंने इसे कोटखावदा
सम्पूर्ण किया था। हो सकता है कि कोटा के किसी मुहल्ले या उपनगर का यह नाम हो । कागज की स्थिति तथा लिखावट की स्थिति से यह प्रति २५०३०० वर्ष की मालूम पड़ती है। ग्रन्थ प्रति में कोई लिपि सम्वत् नहीं दिया गया है ।
231
प्रभाचन्द्र आचार्य के विषय में भी प्रस्तावना में प्रकाश डाला गया है कि अध्याय समाप्ति पर इति श्री वृहत् प्रभाचन्द्रतत्वार्थसूत्र प्रथमोध्याय, श्री प्रभाचन्द्र जी आचार्य के साथ जो वृहत् शब्द लगा हुआ है उससे बड़े प्रभाचन्द्र की सूचना मिलती है। बड़े प्रभाचन्द्र तो आमतौर पर प्रमेयकमलमार्तण्ड के तथा न्यायकुमुदचन्द्र के कर्त्ता ही माने जाते हैं। वैसे प्रभाचन्द्र नाम के अनेक आचार्य हुए हैं जैसे एक प्रभाचन्द्र परलुस निवासी विनयनन्दी के शिष्य हुए, जिन्हें कीर्तिवर्मा प्रथम ने दान दिया था। ये विक्रम की छठी-सातवी शती के हैं। दूसरे प्रभाचन्द्र जिनका उल्लेख श्री पूज्यपादाचार्य ने अपने जैनेन्द्र व्याकरण में सूत्र में किया है ये छठी शताब्दी से पहले हुए हैं।
तीसरे प्रभाचन्द्र का उल्लेख श्रवणबेलगोला के शिलालेख में है जो भद्रबाहु के शिष्य थे, जो चन्द्रगुप्त मौर्य का ही दीक्षा के बाद का नाम है, पर उन्होंने कोई ग्रन्थ नहीं लिखा। अतएव यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र के कर्त्ता प्रभाचन्द्र आचार्य ही इसके लेखक हैं ।
प्रभाचन्द्रीय तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय का पहला सूत्र है'सम्यग्दर्शनावगमवृत्तानि मोक्षहेतुः । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्ष के कारण हैं, मोक्ष का एक साधन है। यहाँ अवगम, वृत्त और हेतु का प्रयोग किया गया है, किन्तु इन शब्दों का अर्थ उमास्वामी के सूत्र की तरह ही है।
इस प्रकार मुख्तार साहब ने मोटे अक्षरों में सूत्र का शब्दार्थ लिखकर फिर आचार्य के अभिप्राय को स्पष्ट किया है। साथ में तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है।